पृथ्वीराज रासो की शब्दावली का सांस्कृतिक अध्ययन | Prithviraj Raso Ki Sabdawali Ka Sanskritik Adhayayan

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Prithviraj Raso Ki Sabdawali Ka Sanskritik Adhayan by सूर्यनारायण पाण्डेय - Suryanarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एाजनेतिक {स्थितिं নাজিব নান टे সা राज्य परस्पर ফুব্র-লে (1 जतल्जा स्मक দির चर गतिहासकारों की दुष्ष्टि में इस युंग की राजनीति में पीलिकता नहीं है। नई चेतना तथा नये विज्ञास का अभाव তু | राज़ागएा विलासिता, शिकार, वाहय-आकुम0ता से रक्षार्थ युद्धरत अथवा कन्था -त्रपहएा एव शर्य प्रदर्शन में जुटे हुए हैं। नवीन सूफ -बूफ के लिए उन्हें अवसर नहीं है | हुआ के पश्चातु किसी बे सप्राज्य की प्रतिष्ठा नहीं हो सकी विभिन्‍न अंबलों में छोटे छोटे राज्य स्थापित हुए । राज- नैतिक विच्छिन्नता दाष्टिगोचर होती है। उत्तर भारत में, आसाम, बंगाल, विहार, नेपाल, मगध, क्नाँज, दिल्ली, पंजाब, काश्मीर,माला, गुजरात तथा दाषिएा भारत में यादव, चालुक्य, चल एवं पाहुय आदि सशक्त राज्य पाए जाते हैं किन्तु कोषं रेसी सार्वभाम सता नहीं थी जो सबको एक सूत्र में इन्हे बाध स्के तथा इनका' नियत्रण कर सके । सुघलमानों के आक्रमता उत्तर-पश्चिम की और से +हुधा होते रहेते हैं । उस समय ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं था जो ब्राक़मएा क्रारियाँ के विछद्ध संयुक्त मौचा बना कर विदे शी सकट का सामना कर सके । आाक़ान्तात्रों से सर्वप्रथम संघ शील गहरवार, चौहान, चदेल भार परिहार आदि राजागएा अनावश्यक জভা फरगहे में लो रहते थे । पारस्परिक सम्बन्ध, द्वय, देष से पूरा हैं| ये रक दूसर को नीचा दिखाने के লন इदा गदते हं | राजनैतिक रक्ता की भावना अन्स्त हं । एाज्य पस्था राजतन्त्रास्थक है | राजा, सर्वोच्च शासक, देवाश अथवा देश्वर्‌ का प्रतिनिधि समफा जाता है। उत्तराधिकार वशानुगत है | राजा কা ज्यैष्ठ पुत्र राजगद्दी का चधिकारी है | इससे সাধ: আমাম্য শা লিখল শী হাক होते ह| उनमें स्वेज्छाचा ता और निरकुशता की मात्रा हथिक होती है। जन सामान्य के शिति कश চাল ভঙাথশি লঙ্কী हे । प्रजा एवं राज्य सम्बन्ध उदासी नतापूर्ता विद्ञताई देता है | महारानियां का' महत्वपुर्ता स्थान है, पर सामान्य हु से प्रशासन में उनका कोई




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