अनमोल रत्न | Anmolratana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भगवान बुद्धदेव ]
'यका कर विहल हो उठी । फिर उनके पैरों पर गिर कर रोने
लगी । उसे उन्होने बहुत से उपदेश दिप । दूसरे दिन उनके
चचेरे भाई नन्द् को युवराज बनना था और साथ ही विख्यात
खुन्दरी 'जनपद्-कल्याणी? से उसका विवाह होना था। बुद्ध
नन्द् को बन कीश्रोरल्ते गप । उनके उपदेश सुनकर उसने
भिल्ल होना स्वीकार कर लिया । फिर राहुल ने भीःप्रचल्या
ग्रहण की । इस प्रकार उत्तराधिकारी न रहने से शुद्धोदन बहुत
व्याकुल हुआ । इस पर बुद्ध ने नियम बना दिया कि मां-बाप
की आज्ञा के बिना कोई बालक संघ में न लिया जाय ।
कपिलवस्तु से बुद्ध अनामाः तट पर 'अनुपीय' गए। वहाँ
उन्होंने अपने प्रसिद्ध शिष्य आनन्द, अपने विशेधी चचेरे भाद
देवदत्त, उपाली नाई और अनुरुझ को दीक्षा दी । फिर
अपनी मौसी महाप्रजावती बिस्बसार की पल्ली क्षेमा तथा अपनी
खी यशोधरा को उन्दने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। इस
प्रकार उनका यश चारों ओर फेलने लगा। देवदत्त इस बात
की न सह सका। वह इनसे उम में ज्यादा था। उनसे कहाँ
कि उसके सामने बुद्ध का संघ-नेता होना अनुचित है। उसने
तीन बार घुद्ध से कहा कि मुझे संघ का प्रधान बना दो। ऐसा
न करने पर वद बुद्ध का खुल्लम खुर्ला शत्र हो गया । उसने
बिस्बिसार के पुत्र अज्ञातशन्नरु को भड़काया। उससे कहा कि
तुम अपने विधर्मी पिता ( बिश्बिखार ) को गद्दी से उतार दो।
अजातशत्र पिता से राज्य लेकर ही सन्तष्ट न हुआ | कहते है
उसने बिस्बिसार को भूखों मार डाला। देवद्त्त ने बुद्ध के
भार डालने की तीन बार कोशिशें की। पर वह सफल न
हुआ। अन्त में अजातशत्रु को पिता की हत्या करने पर बहुत
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