रवीन्द्रनाथ की कहानियाँ | Ravindra Nath Ki Kahaniyan

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Ravindra Nath Ki Kahaniyan by रामसिंह तोमर - Ramsingh Tomar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ रवीन्द्रनाथ की कहानियां ধা আরশ मिला तो प्रवर्णनीय हं श्रीर्‌ मुमित ढे साथ उसने अनुभव किया कि अभी भी एक ग्रात्मा है जिसे वह अपनी कह सकती है। अपने पति को लिखा गया उसका पत्र---यह कहानी पत्र के रूप मे ही लिखी गई है--उसके कभी न जोटने के दृढ़ निव्बय की घोषणा के साथ समाप्त होता हे, यह पत्र पुरुष के उन अन्यायों, नीचताओंं और निर्दयता के सम्पूण इतिहास पर, एक कट निर्णय है, जो परपरा के रूप में अप्रतिटत भाव से माने जानते थे तथा प्रथा के कारण पविन्न समझे जाते थे । इस यूग की अन्य अनेक कहानियों में उस विषय के अनेक रूपान्तर भिनते हे, व्योकि ममाज में महिलाओ का स्थान तथा नारी जीवन की विशेषनाएँ उनके लिए गभीर चिता के विषय थे और वे इस युग मे बराबर उनके विचारों के विषय बने रहे । रवीन्द्रनाथ की कहानियों की पूर्ण समीक्षा के लिए विस्तृत स्थान की आवद्यकता है। उनकी कहानियों के इस अ्रत्यत अपूर्ण पर्यवेक्षण को यही समाप्त करना उचित होगा । वास्तव में उनकी कहानियों के परिचय की आव- दयकता नही है, वे अपने विषय में स्वय बहुत अ्रच्छी तरह बता सकती है । मुझे इसमे कोई संदेह नहीं कि अनुवाद में भी उनके अमर सौदय का कुछ भाग पाठक के हृदय का हष के साथ स्पर्श करेगा, और क्‍योंकि मानव-स्वभाव सर्वत्र एक समान है, श्रत भारत के विभिन्‍न भागों के पाठक इन पात्रों म---वग-भूमि के पुत्र-पुत्रियों मे--अपने सगे-सबधियों की परिचित रूप-रेखाएं पायेंगे । २० सितरभर १६५६ सोमनाथ मत्र पै 1




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