अवेस्तीय आवाँ अरद्वी सूर यश्त का आलोचनात्मक अध्ययन | Avestiy Anvan Ardvi Soor Yasht Ka Aalochanatmak Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मनोज कुमार मिश्र - Manoj Kumar Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अरर्वत्-नर तथा खुर्शेद् चिषह्ठ दो चर (चाकर) दासी के पुत्र बताये गये है।
बुन्देहिश्न 32/5-6 के अनुसार उसकी रक्षिता से भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ। एक अन्य कथा
के अनुसार उख्श्यत् अरत् एवं उख्श्यत् नमह की माताओ क्रमशः फ्रेधि एवं वड्.हुफ्रेधि ने
कासव झील मे सरक्षित जुरथुश््र के वीर्य को स्नान कं समय धारण कर समयानुसार एक
एक पुत्रो को जन्म दिया। यह कथा उस वैदिक कथा से अद्भुत साम्य रखती है जिसके
अनुसार मैत्रावरुण के क्षरित वीर्य को विश्वेदेवो ने पुष्कर मे रखा, जिसे उर्वशी ने धारण कर
वशिष्ठ को जन्म दिया।
जरथुश्त्र के शिक्षक का नाम बुरजिन कुरुंस था। बीस वर्ष की अवस्था मे वह
प्रत्रजित हुआ एव 30 वर्ष की अवस्था में उसे परमात्मा का साक्षात्कार एव ज्ञान प्राप्त हुआ।
इसी अवस्था कार्यक्षेत्र मे प्रविष्ट हुआ।
अविच्छिन्न स्वप्नवार्ताओं के माध्यम से जरथुश्त्र का धार्मिक वर्ष प्रारम्भ हुआ।
प्रथमर्वाता अहुरमन्दा से हुई तत्पश्चात् द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पञ्चम, षष्ठ एव सप्तम वार्ता
क्रमशः वोहुमनह्, अष वहिश्त, ्शश्रवडूर्य, स्पन्ता आरमइति, हरउर्वतात् एव अमरतात सं हुई
है। 5०160101 2 221 ऽ भ.्ा) मे सविस्तर इन वार्ताओ का वर्णन उपलब्ध होता हे
उपरि निर्दिष्ट वार्ताओं के उपरान्त भी जरथुश्त्र का जनमानस पर तनिक भी प्रभाव
नही हुआ। जनता मे उसका सिद्धान्त ग्राह्य नही हुआ। दश वर्षो के अन्तराल मे कवल कवि
' विश्तास्प' ने ही ज्रथुश्त्रोपदिष्ट धर्म को ग्रहण किया। तत्पश्चात् दो वर्षो मे वह कवि
विश्तास्प के विचार-परिवर्तन मे सफल रहा। विर्तास्प के विचार परिवर्तन से उसका कार्य
अत्यन्त सुकर हो गया। उसके संरक्षण मे जरथुश्त्र- प्रवर्तित धर्म ईरान का महत्वपूर्णं धर्म बन
गया। खुर्तक् अवेस्ता कं अनुसार विश्तास्प के हदय-परिवर्तन कं लिए एवं स्वविचारों से उसे
परास्त करने के लिए जुरथुश्त्र ने अर्व सूर् अनाहिता से प्रार्थना कौ थी।
उपर्युक्त मे सत्यासत्यविवेक वाह्यप्रमाणाभाव से अत्यन्त दुष्कर है। फिर यह तो सहज
ही बात है कि किसी व्यक्ति की उच्छिखता को लोग आसानी से मान्यता नही देते, इसलिए
] उतासि मेत्रावरुणोर्वसिष्ठोर्वश्या ब्रह्मन्मनसोऽधिजातः ।
द्रप्स स्कन ब्रह्मणा दैव्येन विश्वेदेवा पुष्करे त्वाददन्त।। ऋ ० 733 1]
2 20102585191 079 10010176101 10617 ॥20 [0908 - 30
3 01035161 11€ 01001161 01 81018171112, 08099 - 50
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