हिन्दी उपन्यास में खलपात्र | Hindi Upanyas Men Khalapatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थे ; उनकी बोली में स्पष्टता नई। था । अतरव वे पुध्मवाच: थे उसका रंग तौ काला था ई; 1! वैडिक युग में रादासों और पिशाचौ का मी उत्हेश बाता है {जनके व्यक्तित्व और कृतित्व का स्वरुप उनके ভিধ জগ জী কাঁতি লিল करता है । रास जणो थे , कच्चा मास साते थे, उनकी दुष्ष्टि कृर थी । ये दुष्कु ति के कम में ही स्मृत हैं। बाये उनका सर्वगाश्ञ चाहते थे हसलिए इन्द्र सै प्रार्थना करते थे कि নল ই रादासों কী মাকে ইবলাআ की दाकर । रसौ का आवार~व्यवहार भिधया আঁ वसत्य से मरा हौता था । राषासों की एस्थ्रियाँ मी माया द्वारा हिंसा करती थीं | वे इृदय वैश कौ घारण करते वाले तथा प्रपर्थ। स्वभाव के थे , इसी लिए उनके 1तशाचर और यातुबान नाम प्रचलित हुए । यर्धाप তিস্ত্র विवाह पद्धति में रादास विवाह मी रुक प्रकार है तथापि वह एक कृष्ट एकार का विवाह ही समाज में माना गया है | षास शब्द गाली के रुप में प्रयुक्त होता था और आज मी है। इसमें उनकी জালা की मुल मावनमा निशित है | रादासों के समान ही पिदा भौ कन्येव में मयंकर कहे गये है । ये मी क्या मांस साते ये । उनकी पेश्यानिक विभा छल, इंदय से मरी होती थी १ पपिज्ञाचीं को हुड़ कौटि में रसा गया । चेषा जिवाह पद्धति स्वीकृत होने पर मी निकृष्ट मानी गमी । দাদ कः यलो मनिलो मतिः पिर कति समासाः नि नतः भ গজ খবনক उतः भि कः जि अ ततः नाः सतः पिः क जतिः श मिनि कि सैः कि নিন রি কাজল জি জী এর तमसः रः क ২৮ ভা राम जी उपाय्याय ~ प्राचीन मारत की सामाजिक संस्कृति “१० ६




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