द्विभाषीय अशोकीय अभिलेख | Dwibhashiy Ashokiy Abhilekh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के सदृश था। सम्मवत उसे किसी ढाचे मे सभा-स्थल के बीच मे खद्छा कर दिया गया। हर तीसरे महीने
जनता को इसका धर्म-लेख सुनाया जाता था। द्विभाषीय अभिलेखो मे शिलाखण्ड-लेख और शिलाफलक-
लेख भी मिलते है, लेकिन सब-से अद्भुत है तक्षशिला का स्तम्मलेख | सामान्यत अशोक के स्तम्भ
चुनार के बलुए पत्थर से बनते थे और उनपर सुप्रसिद्ध मौर्य पॉलिश करवाई जाती थी जिससे वे अति
चमकदार और चिकने हो जाते थे | पर तक्षशिला का अरामी अभिलेख सगमरमर के अष्टभुजाकार स्तम्भ
पर अकित हुआ। जी० फुसमन _ जैसे विद्वान अशोकीय स्तम्भ' कहने से भी हिचकिचाते है क्योकि वे
ईरानी प्रभाव पर अधिक बल देते है। विदेशी कारीगरी की अच्छाइया अपनाने मे कोई बुराई नही है परन्तु
श्रीराम गोयल की बात माने कि अशोकीय शिल्पकारो ने उन्हे परिपक्व भारतीय रूप तक विकसित किया।
222 अशोकीय लिपिकार 081101/(003 8091858
अशोक के स्वदेशी शिल्पकारों ने शिलाओ की चमकाया परन्तु विभाषा मे द्विभाषिक लेख लिखवाने के
लिए राजा उन विदेशी लिपिकारों के सहयोग पर निर्भर थे जो सीमान्त क्षेत्र की प्रजा मे सम्मिलित हो
कर स्वदेशी बन चुके थे। उस काल का कोई भी अरामी अथवा यूनानी लिपिक पश्चिम एशिया की प्राचीन
लिपिकीय परम्परा से अलग नहीं दो सकता था । अस्तुतिकरण की शैली मे और शब्दावली के चयन मे
उसे जैसा-तैसा करके परम्परा का पालन करना था। फिर भी अशोक के प्रशासनिक प्रबंध के अधीन होने
के कारण उसे बहुत-कुछ पाटलिपुत्र की दफ्तरशाही पद्धति का भी आदर करना था ।
के०अल्० यार्नर्त् ने “अशोकीय लिपिको के सवघ मे कुछ नये सुञ्ञाव दिये ` पाटलिपुत्र के दरबारी
लिपिक सम्राट के आदेशानुसार प्रथम मानक प्रारूप ( मास्टर् कंपी ) तैयार करते थे। तब राजघानी से
(1) 2० श्रीरास सोयत प्रियदर्शी अशोक पृ० 143 |
(2) 3603914৮950 छातं अ] (८४८०००९५ ॥वा०> | 2 1987 9 780 ( देण शोध के प्रथम भाग मै पृ० 105}
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