निराला और पन्त के काव्य के आध्यात्मिक प्रेरणा स्रोतों का तुलनात्मक अध्ययन | Nirala Aur Pant Ke Aadhyatmik Prerana Sroton Ka Tulanatmak Adhyayan

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Nirala Aur Pant Ke Aadhyatmik Prerana Sroton Ka Tulanatmak Adhyayan by श्रीमती चन्दा देवी - Shrimati Chanda Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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या भाव या इच्छा द्वारा नहीं की जा सकती उसी प्रकार धार्मिक चेतना की व्याख्या केवल भावना, ज्ञान और क्रिया द्वारा नहीं की जा सकती है। बल्कि ये तीनो तत्व जब सगठित रूप मे प्रकट होते है तभी धार्मिक चेतना अपनी पूर्णता को प्राप्त करती है। इन तीनो विशेषताओ द्वारा धार्मिक चेतना के प्रकट होने के कारण ही धर्म को “सम्पूर्ण मानव मन की प्रतिक्रिया” कहा गया है। इसमे मानव जीवन के समस्त पहलू सन्निहित रहते है । धार्मिक चेतना के वास्तविक स्वरूप को जान लेने के पश्चात्‌ यह ज्ञात हो जाता है कि जिस ओर धार्मिक चेतना उन्मुख होती है उसका प्रमुख विषय धार्मिक ज्ञान ओर परम सत्य की प्राप्ति करना है। उसका समस्त प्रयास ओर धार्मिक जीवन जीने की आकाक्षा इसी परम सत्य की प्रापि के लिए होता है। मनुष्य की आध्यात्मिक वृत्ति बिना आध्यात्मिक सत्ता की प्रापि के सतुष्ट नहीं हो सकती । यह धार्मिक ज्ञान ओर परमसत्ता की प्राप्ति केवल वैयक्तिक स्तर पर प्रकट नहीं होती, बल्कि इसे सामूहिक या सामाजिक स्तर पर व्यक्ति उतारने का प्रयास करता है, तब धर्म ॑का स्वरूप अत्यन्त व्यापक ओर ग्रहणीय हो जाता है। इसीलिए सच्चा धार्मिक व्यक्ति परम सत्ता कां बोध करके कहता है- “एक सत्‌ विप्रा बहुधा वदन्ति। ईश्वर सत्य, शिव, सुन्दर का प्रतीक है। अत यही धार्मिक चेतना का सर्वोच्च मूल्य भी है । इसीलिए ईश्वर कौ सच्चिदानन्द भी कहा जाता हे । विचार से सत्‌, सकल्प से शिव तथा भावना से सुन्दरम्‌ को प्राप्त किया जा सकता है। किन्तु इनमे से अकेले किसी का भी महत्व नहीं है अपितु सम्पूर्ण रूप से इनका समन्वयात्मक ख्प ही सर्वोच्च विषय है जिससे धार्मिक चेतना प्राप्त की जा सकती है। धार्मिक व्यक्ति सत्य की खोजन के लिए स्वानुभूति का अवलम्ब ग्रहण करता है । यह अध्यात्म प्रगाढ भावना से ओत-प्रोत धार्मिक अनुभूति के




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