साडख्य और शाडकर अद्वैत में प्रकृति की संधारणा का समीक्षात्मक अध्ययन | Sadkhy Aur Shadkar Adwait Men Prakriti Ki Sandharana Ka Samikshatmak Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
323
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आए हैं - त्रिगुण,षोडश, विक़ार और पंचाशत बुद्रि कृत सर्गादि । इसी उपनिषद्
मे सर्वप्रथम कपिल एवं सांख्य का नामोल्लेख हुआ है जिसके आधार पर अनेक
विद्वान् यह निष्कर्ष निकालते हैँ कि इस उपनिषद् के पूर्वं ही सांख्य व्यवस्थित
हो चुका था । मैत्रायणी उपनिषद्, जो अपेक्षाकृत अर्वाचीन उपनिषद् है, इसमें
सत्त्वादिगुणत्रय, तन्मात्रो एवं पंचमहाभूतों का वर्णन है। तन्मात्रो का
उल्लेख प्रष्नोपनिषद् मेँ भी प्राप्त होता है। इन उपनिषदों की तो बात ही
क्या है, अनेक विद्वान् ऋग्वेद के निम्नलिखित मन्त्र मेँ प्रकृति - पुरूष सिद्धान्त
की कुछ अस्पष्ट ज्ञलक देखते ই :-
दक्षस्य वादिते जन्मनि व्रते राजाना मित्रावरूणा विवाससि ।
अतूर्तपन्था पुरूरथोः अर्यमा सप्त होता विषुरूपेषु जन्मसु ।।
डा0 गजाननशास्त्री मुसलगांवकर ने इस मन्त्र मेँ अदिति का অথ
प्रकृति, दक्षः का अर्थ पुरूष एवं सप्त होता का अभिप्राय सात प्रकृति ~ विकार
करके सांख्य की अति - प्राचीनता प्रतिपादित की है!“ ड0 आद्या प्रसाद मिश्र
ऋग्वेद के इस मन्त्र मेँ तम आसीत्तमसा गढमगरप्रकेर्तः मे आए तम को सांख्य
के भावी अव्यक्त का संकेत मानते हैं।? उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट होता
है कि सांख्य की पृष्ठभूमि में विद्यमान विचार अत्यन्त प्राचीन हैं एवं उपनिषदों
से प्रभावित हैं किन्तु यह नहीं स्पष्ट हो पाता कि वेद एवं प्राचीन उपनिषदों
| बृहदारण्यक एवं छान्दो0{ के विचार सांख्यशास्त्र से सम्बद्द हैं या नहीं। डा0
राधाकृष्णन का विचार है कि जब सांख्य यह दावा करता है कि उसका आधार
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1 मैत्रायणी - 2/5
2 पञ्चतन्मात्र भूतशब्दनोच्यन्तेऽथ पञ्चमहाभूतानि भूतशब्देनोच्यन्ते 1, वही 3⁄2
3 प्ररनोपनिषद - 4/8
4. ऋग्वेद - 10/64/5
5 सांख्य त्त्वकौमुदी की व्याख्या तत्वप्रकाशिका - डा0 गजाननशास्त्री कृत
6 10/129/3 ऋग्वेद
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