साठोत्तरी हिन्दी कविता में लोक सौन्दर्य | Sathottri Hindi Kavita Men Lok Saundarya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
63 MB
कुल पष्ठ :
431
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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को कुछ लोगों में सीमित कर दिया गया तथा व्यापक तौर पर जनता की कलात्मक
प्रतिभा को दबा दिया गया (सापेक्ष: लोक संस्कृति विशेषांक)। अतः मेध जी के
अनुसार यही से चंद व्यक्तियों की कलात्मक प्रतिभा बनाम जनता की कलात्मक भावना
का विभेद होने लगा। यही से लोक साहित्य का आरम्भ होता है, जिसमें लोक कथायें,
लोक गीत, मिथक, मुहावरे आदि आते हैं। इसके बाद लोक व्यवहार आते हैं, जो
न साहित्य हैं, न कला। जैसे विश्वास, प्रथा, अंध विश्वास, कर्मकाण्ड आदि। अगला
रूप लोक कला का है जैसे लोक नृत्य, लोक नाट्य आदि। आगे लोक विज्ञान है
जैसे लोक विचार, जादू-टोना आदि। लोक व्यवहार, लोक कला, लोक विज्ञान, लोक
संस्कृति के अन्तर्गत ही आते हैं।
इस रूप में हम देखते हैं कि लोक का संदर्भ लगातार बदलता रहा है और इसके
परिणाम स्वरूप बीसवीं शताब्दी तक आते आते नये सौन्दर्ययोध का उदय हो चुका
था। यह है संघर्ष की प्रचण्ड सौन्दर्य प्रतीति जिसमें शहर ब ग्राम, शिष्ट व लोक,
पुराने व आधुनिक के अन्तर्विरोध प्रशमित होते जा रहे हैं और प्रकृति के ऊपर मनुष्य
की दक्षता बढ़ती जा रही है। आज हमें नए सिरे से कथा मानकों, क्रमांकों, अभिप्रायों
की आवश्यकता ह जिसमें सौन्दर्यबोध तो होगा ही, किन्तु अंधविश्वास व सामंतीय
सम्बन्ध नहीं होगा! यह ही लोक का आधुनिक परिदृश्य होगा।
लोक ओर समाजशास्ीय दृष्टि-
लोक की समाजशास्त्रीय दृष्टि वस्तुतः माकर्सवादी दृष्टि से जुड़ी है, जिसमें द्रन्द्रात्मक
पद्धति को महत्व दिया गया है। लोक की इतिहासवादी दृष्टि (लोक चेतनावादी) इसे
्रन्द्रात्सक नहीं मानती। वस्तुतः माक्सवाद लोक व शास्त्र के बीच द्वन्द मानकर चलता
ই ओर स्वयं डा0 हजारी प्रसाद द्विवेदी का यह कहना है। इस दृष्टि विचार करने
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