बचपन | Bachpan

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Bachpan by पं. अमरनाथ विद्यालंकार - Pt. Amarnath Vidhyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शरारती ओर ढीठ बच्चे १७ चीज़ें सुगम, सहज ओर स्वाभाविक प्रतीत होने लगती है, क्योकि अरव पग-पग पर उपे निरु्साहित करने वाली इष्यालु माँवाप की टोका-टोकी नहीं है, और उसक्री चेष्टाओं पर उनकी तरफ से जो रुकावट थी वह दूर हो चुकी है । नई परिस्थितियों में बह बहुत संतुष्ट रहता है। उसके सम्बन्ध में अध्यापकों की रिपोर्ट अब बहुत अच्छी आ रही हैं, ओर बालक माँ-वाप पर यही प्रकट करता चाहता ह कि स्कल का नया वातावरण उसके लिए कितना रुचिकर है, ओर जो समय उसक्रा स्कूल में गुज़रता है वह उसके लिए कितना सुखदायक ओर आनन्दवर्धक होता है। परन्तु यह बात भी माँ-बाप के लिए एक ग्रकार के डाह की सामग्री उपस्थित कर देती है। वे ऐसा यकीन नहीं करना चाहते कि वालक कौ खुशी दे लिहाज से घर को स्कूल के वाद दूसरा द्रजा मिल्ल रहय ই, अथवा वालक का प्यार ओर उसद्धी अभि- रुचिरया उनसे भिन्न किसी अन्य व्यक्ति की ओर प्रवाहित हो रही है । यह एक बहुत बड़ी मुश्किल है जो, ज्यों ही बालक के लिए घर से बाहर का द्वार खुलता है, आगे आ जाती है। बालक घर से, बाहर नये-नये सम्बन्ध गाँठने लगता है | माँ-बाप यह तो अनुभव करते हैं कि वे घर में बालक को वह सुख-चैन और संतोष नहीं दे सके जो उन्हें देना चाहिए था, परन्तु वे यह भी सहन नहीं कर सकते कि जो वस्तु बालक को घर से नदीं मिली, वह उसे बाहर के अपरिचित व्यक्तियों से उपलब्ध होती रहे। बालक के प्यार पर




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