प्राचीन भारतीय साहित्य का इतिहास | Pracheen Bharateey Sahity Ka Itihas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
267
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)তু भारतोय साहित्य का इतिहास
हो गया था कि भारत में अंग्रेजी साम्राज्य तभी सुरक्षित है यदि शासक लोग
भारतीयों की सामाजिक तथा धामिक विचारधारा को समझेंगे और तदनुसार
कार्य व व्यवहार करेंगे। अंग्रेज इस तथ्य को कभी नहीं भूले । वारेन हेस्टिग्स की
प्रेरणा से ही यह कानून बना कि भारतीय न्यायालयों में कार्यवाही के समय
परम्परागत भारतीय विद्वान् भी बेठेंगे जो कि निर्णय में अंग्रेज न्यायाधीशों की
सहायता करेंगे । १७७३ में वारेन हेस्टिग्स बंगाल के गरवर्नर-जनरल के पद पर
आसीन हुआ । उसने परम्परागत धर्मंशास्त्र के विद्वान अनेक ब्राह्मणों के द्वारा
“विवादार्णव-सेतु' नाम के ग्रन्थ की रचना करवाई) इसमे उत्तराधिकार, विवाह
इत्यादि सबके विषय में कानून थे । परन्तु इस पुस्तक का संसत से श्रग्रेजी में ग्रनुवाद
करने बाला कोई विद्टान् नहीं मिला। इसलिए इसका फारसी में भ्रनुवाद करवाया
गया श्रौर नैथेनियल ब्रसी हालडेड ने इसका फारसी से अंग्रेजी में श्रनुवाद किया ।
< कोड श्रॉफ जेन्टू लॉ' (हिन्द विधि संहिता) के नाम से ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने
१७७६ में अपने व्यय से प्रकाशित करवाया । |
चात्सं वित्किन्स प्रथम अंग्रेज था, जिसने संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त
किया । उसे वारेन हेस्टिग्स ने प्रेरणा दी कि वह संस्कृत-विद्या के मुख्य केन्द्र वारा-
णससी में पण्डितों से संस्कृत पढ़े चाल्सं विल्किन्स ने १७८४ में दाशनिक काव्य
भगवदुगीता का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया। यह संस्कृत की प्रथम पुस्तक थी
जिसका कि किसी भी यूरोपीय भाषा में संस्कृत से सीधा अनुवाद हुआ । इसके
दो वर्ष बाद जन्तु-कथा हितोपदेश का तथा १७६५ में महाभारत के शक्ुन्तला-
आख्यान का अनुवाद उसने प्रकाशित किया) उसकी संस्कृत-व्याकरण शै८०८ में
प्रकाशित हुई । उसके मुद्रण के लिए यूरोप में प्रथम वार संस्कृत टाइप ढाला गया,
संस्कृत श्रक्षरों का लेखन स्वयं चाल्स विल्किन्स ने किया। चाल्सं वित्किन्स प्रथम
यूरोपीय विद्वान था, जिसने भारतीय शिलालेखों का अ्रध्ययन्त किया और उनमें
से कुछ के अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किए। चाल्से विल्किन्स ने माग्गे-प्रदर्शक
का कार्य किया। इस क्षेत्र में इससे भी अभ्रधिक महत्त्वपूर्ण कार्यं प्रसिद्ध प्राच्य
विद्याविशारद विलियम जौन्सर (जन्म १७४६ तथा मृत्यु १७६४) ने किया।
विलियम जोन्स १७८३ में भारत गया और फोट विलियम मे मुख्य न्यायाधीश के
पद पर आसीन हुआ । भारत जाने से पूवं ही युवावस्था में उससे प्राच्य काव्यं
का ज्ञान प्राप्त कर लिया था तथा शभ्ररबी तथा फारसी की कुछ कविताशों का
१. इसका जमंन अ्रनुवाद १७७८ में हम्बगं में प्रकाशित हुआ | “जेन्ट्! शब्द पोचंगीज
शब्द “जेन्ठियो' का श्रांग्लभारतीय रूप है। “जेन्टियो” का भ्रथे है मूतिपूजक--भारतीय मूर्तिपुजक
| সুন্নি 1 | | |
२. विलियम जोन्स महान् विद्वान् तथा उत्साही प्राच्य-विद्या विशारदतोथाही, इसके
साथ ही वह प्रथम आंग्ल-भारतीय कवि भी था। उसने ब्रह्यन्, नारायण तथा लक्ष्मी इत्यादि
विषयों पर कविताएँ लिखीं ।
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