राष्ट्रभाषा का प्रथम व्याकरण | Rashtrabhasha Ka Pratham Vyakaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rashtrabhasha Ka Pratham Vyakaran by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about किशोरीदास वाजपेयी - Kishoridas Vajpayee

Add Infomation AboutKishoridas Vajpayee

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
क्रिया की प्रधानंता हम दोनो ने किया--आवाम्‌ अकुब हम सब ने किया--वयम्‌ अकुमे इतने रूप पुरुष तथा वचन के भेद से हुए। लिङ्ग-भेद नहीं होता है। राम : अकरोत' ओर 'रमा अकरोत! | दोनो जगह अकरोत्‌ है। नप॑ंसक-खिङ्ग मँ भी क्रिया-रूप यही अकरोत्‌ रहे गा । परन्तु छिज्ञ-भेद से क्रिया का रूप-सेद न होने पर भी पुरुष-भेद से जो उतने रूप-भेद हैं, उन को भी तो मन में छाइए | लिड्र-भेद से तो केवछ तीन भेद होते ; पर पुरुष तथा वचन के भेद से तो नो भेद हुए--तिगुने ! यह तो साधारण बात है। किसी-किसी क्रिया के तो एक ही काछ में पुरुष-सेद से सौ-सौ वेकल्पिक रूप-भेद होते हैं। संस्क्रत पढ़ने वाछे को वे सब सीखने पड़ते हैं, याद करने पड़ते हैं। उन के प्रयोग में बड़ी संकट सामने आती है। परन्तु उसी ( संस्कृत ) भाषा में क्रिया के कृद्र्त शूप कितने सरल है, देखिए ¦! उसी कार मे सीधा-साद्‌ा ८तः ( क्त ) प्रत्यय है, सब पुरुषों मे समान- माघव ने किया--माधवेन कृत्तम्‌ उन दोनो ने किया--ताम्यां कृतम्‌ उन्हों ने : किया--तेः कृतम्‌ त्‌ ने किया-त्वया कुतम्‌ प्रथम्‌ अध्याय 'राष्ट्रभाषा का




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now