वार्षिक रिपोर्ट- उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन , इलाहाबाद | Varshik Report - Uttar Pradesh Public Service Commision, Allahabad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) मामलों में ज्येष्ठता से तात्पर्य उस क्रम से हं जिस कम मं स्थानापन्न पदोन्नति के लिये अभ्यर्थियों का चुनाव किया जाता है, न कि उस क्रम से जिस क्रम मे उनके नाम नीचे वाली सेवाओं में होते हें। शासन ने इसे स्वीकार कर लिया। ७--डिप्डी सुपरिन्टेम्डन्ट पुलिस के पदों क लिथे पदोन्नति द्वारा चुनाव करने के सम्बन्ध में शासन ने उन्हीं अधिकारियों की चरित्रावलियों को भेजा था, जो मनोनीत करने वाले प्राधि- कारियों द्वारा विचारार्थ संस्तुत किये गये थे। कमीशन ने शासन से अनुरोध किया कि वह विभागीय ভুনা ससिति द्वारा मुख्य सूची में रक्‍्खे हुये कनिष्ठतम अधिकारी से ज्येष्ठ सभी पात्र अधिकारियों की चरित्रावलियां भेजे ताकि कमीशन अपना सन्तोष कर छ कि विना पर्याप्त औघचित्य के कोई भी ज्येष्ठ पात्र अधिकारी छोड़ा नहीं गया है, जेंसा कि शासनादेश सं० २१६६/ २-ख---५४-- १९४८, दिनांकित २२ अक्टूबर, १९५३ में अपेक्षित है। शासन ने मांगी हुई चरित्रावल्ियों को नहीं भेजा और बतलाया कि उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा के नियमों, १९४२ के अधीन केवल वे हौ पुलिस इन्सपेक्टर इष्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस के पदों पर पदोन्नति के लिये पात्र थे, जो इष्टी इन्सपेक्टर जनरलों तथा इन्सपेक्टर जनरल हारा सनोनीत क्ये गयं ओ ओर एसे सब अधिकारियों कौ चरिज्रावलि्यां पहले ही उसके पास भेजी जा चुको हँ । शासन ने यह भी कहा कि २२ अक्टूबर, १९५३ के शासनादेश, जिसका निर्देश कमीशन ने किया हैं, केवल कार्यकारी आदेश ( ०5०८ए४०० 01०४8 ) थे और वे किसी वेधानिकी नियम (६४१० ए एपा€) के उपबन्धो का उल्लंघन नही कर सकते । शासन कं विचार से कमीशन अथवा शासन को भी यह अधिकार नहीं हे कि वे सनोनोत करने वाले प्राधि- कारी से यह पूछें कि उसने अमुक अधिकारी को क्यं मनोनौत नहीं किया या अमुक अधिकारी को क्‍यों सनोनीत किया ? कमीक्नन ने लासन को बतलाया किं नियुक्ति (ख) विभाग शासनादेश सं° ०-३०५/२-ख- १६५३, दिनांकित ३० जनवरी, १९५३, जिसके अनुसार विभागीय चुनाव समिति द्वारा संस्तुत अभ्यर्थियों की उपयुक्तता के विषय में परामर्श देने के अतिरिक्त कमीशन पर इस बात का भी उत्तरदायित्व आ गया कि वह यह देखें कि किसी ज्येष्ठ अधिकारी का अवऋमण बिना पर्याप्त औचित्य के नहीं हुआ था, पदोन्नति कं सभी मामलों में लागू होते थे, और इस कारण सभी सेवा नियम उस हद तक अपने आप संशोधित हो गये हैं। यह तक कि किसौ सामान्य आदेश (66७81 ०0०) से सेवा नियमो (8०1०6 पः न मे संशोधन नही किया जा सकता, मुंदिकल से सही हं । पदोन्नति कौ पुरानी प्रक्रिया सभी सेना-नियमों में निर्धारित थी और जब पदोन्नति के सभी मामलों में उस प्रक्रिया का संशोधन कर दिया गया, तो उस ह॒द तक सभी सेवा-नियम अपने आप संशोधित समझे जाने चाहिये। मनोनीत करने वाले प्राधिकारी के स्वयं विवेक के सम्बन्ध में कमीशन से कहा कि जब उसे शासन के सुख्य सचिव तथा इन्सपेक्टर जनरल पुलिस से बनी हुई समिति द्वारा किये गये चुनाव का पुतरावलोकन करना पड़ता हें तो कोई कारण नहीं हैँ कि कभ्ीशन यह जांच करके अपना सनन्‍्तोष न कर ले कि डिप्टी इन्सपेक्टर जनरल पुलिस महोदयों ने अपने विवेक का उचित प्रयोग किया है । कमीशन ने यह भी कहा कि यदि शासन का यह विचार हो कि पुलिस विभाग के अधिकारियों से सम्बन्धित कुछ सूचनाओं को कमीदान से छिपा रखता हुँ तो कमीशन ऐसे सीमित अधिकारों के अधीन रह कर अपना परामशं देमे कौ अपेक्षा यह चाहेगा कि उसके पर्यंबलोकन से उन मासलीं को निकाल दिया जाय) ८--पदोच्नति के कई मामलों में कमीशन ने देखा कि जो व्यक्ति शासन के अन्य विभागों मे प्रतिनियुक्ति पर (0 0९८१९४०८) थे उन पर विभागीय चुनाव समिति ने निम्त से उच्चतर सेवाओं या पदों पर पदोन्नति के लिये विचार नहीं किया था। कमीशन ने कहा कि उस आधार पर किसी अधिकारी के अधिकारों की उपेक्षा करना अनुचित था क्योंकि सामान्यतः प्रतिनियुक्तित की स्वीकृति -लोक-हित में दी जाती है।_ उससे सुझाव दिया कि ऐसे व्यक्तियों वो सासलों पर पदोन्नति के समय विचार करना चाहिये । किन्तु स्थायी पदों पर उनके पूर्वाधिक्तार (11००) अनिश्चित काल तक न चलते रहने देना चाहिये।




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