बापू के कदमों में | Baapuu Ke Kadamon Mein

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Baapuu Ke Kadamon Mein by राजेंद्र प्रसाद - Rajendra Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय मभ पहरा मौका महात्मा गांधी को देखने का कलकत्ता मेँ मिला । जब वहु दक्षिण अक़़िकासे रोटकर हिन्दुस्तान के मस्य-मुख्य स्थानों का दौरा कर रहे थे, कलकत्ता में उनके स्वागत के लिए एक सभा हुई थी, जिसमे मँ भी कुतूहल-वश गया था । उन दिनों उनको জীন कमंवीर गांधी' कहा करते थे । वह्‌ सफेद बन्दवाला अचकन, धोती ओर सफेद काठ्यिावाड़ी पगड़ी पहना करते थे । पैरों में जूते नहीं पहनते थे, मगर कन्ध पर एक चादर रखा करते थे। मेने अखबारों में उनके दक्षिण अफ्रिका के कामों की कहानी कुछ पढ़ी थी और इसलिए जब उनके स्वागत की सभा हुई तो मै भी वहाँ गया । यह शायद १९१५ की बात होगी । दूर से ही सभा में उन्हें देखा और वहाँ उन्होंने क्या कहा, इसका कुछ स्मरण नहीं है । यह भी नहीं याद है कि उन्होंने कुछ कहा या नहीं; क्योंकि पीछे मैने सुना कि स्वर्गीय गोखलेजी ने उनसे वचन ले लिया था कि हिन्दुस्तान की हालत वह जा- कर देखें; पर एक बरस तक किसी प्रकार-के आन्दोलन में भाग न लें, और न व्याख्यान ही दिया करें। यह समारोह उस एक बरस के भीतर ही हुआ था । इसलिए शायद उन्होंने कुछ कहा ही नहीं; पर मुभे आज कु स्मरण नहीं है । हाँ, इतना याद है कि उस समय में कलकत्ता में ही रहता था और उस सभा में गया था । १९१६ के दिसम्बर में लखनऊ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ । में पटना-हाइकोर्ट के खलने पर, १९१६ के मार्च से, पटनो चला आया और वहीं वकालत करने लगा। पटना से ही लखनऊ-काँग्रेस में गया। वहाँ महात्मा गांधी भी आये थे। चम्पारन के किसानों के कुछ नेता, जिनमें मुख्य श्रीराजकुमार शुक्ल और पीर मुहम्मद म्‌निस थे, कांग्रेस में अपना दुखड़ा सुनाने गये थे। मैं वकालत के कारण राजकुमार शुक्ल को जानता था और चम्पारन के रैयतों की बुरी हालत से भी कुछ परिचित था, पर वह परिचय बहुत ही अधूरा और आंशिक था। अगर यों कहा जाय कि वह नहीं के बराबर था, तो अत्युवित नहीं होगी । विहारके युवकों के नेता स्वर्गीय ब्रजकिशोरप्रसादजी थे। वह वहाँ की शिकायतों से काफी परिचित थे, करब्रेंकि उन दिनों की लेजिस्लेटिव कौन्सिल के वहू मेम्बर थे और वहाँ इस समस्या पर उन्होंने कई बार प्रइन पूछे थे तथा दूसरे प्रकार से भी इस




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