विज्ञान - भाग 104 | Vigyan - Bhag 104
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
93
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १५ ]
खाने की थालियाँ, कडाहियाँ रकाबियाँ, प्यालियाँ
आदि इनेमेल की' बनती हैँ! ये सरलता से साफ की
जा सकती हैं । इत पर न तो अम्लों और न क्षारों का
प्रभाव होता है अभ्रतः खट्टी रसदार वस्तुओं को इनमें
रखा और पकाया जा सकता है। इनैमेल के बने पात्र
सरलता से टूटते नहीं, ओर सस्ते होते है फलतः इनका
प्रयोग सामान्य स्तरके लोगों में होता है
कंच के बने पात्र
লহ चमक, रंग-बिरंगी छुटा, पारदर्शकता, कम
मूल्य के कारण प्रत्येक घर में काँच के बने गिलास,
प्याले, तश्तरियाँ, जग, अचारदान आदि बड़ी मात्रा
में देखे जाते हैं। यदि कोई दुर्गूणा है इन पात्रों में तो
वह है इनकी भंग्ुरशीलता जिससे कि हाथ से छूट कर
गिरने, या असमान गरम होने से काँच के बतंन चूर-
चुर होकर छितर जति ह, दूने वाले के अंग क्षत-विक्षत
हो जाते हैं ।
किन्तु इसके लिये वैज्ञानिकों ने ऊष्मासह काँच
द्रंढ़ निकाला है। इसे ज्वाला के ऊपर धातु की ही
भाँति रखकर गरम किया जा सकता है।
काँव आधुनिक युग की सबसे बड़ी देन है।
कच एक रासायनिक मिश्रण ই जिसे सिलिकन,
केल्पियम तथा सोडियम के आक्साइडों को गलाकर
तैयार किया जाता है। इस मिश्रण को गलने के लिए
२५००० फा० ताप की आवश्यकता होती है। इससे
सिलिकेट बनते हैं श्रत: काँच विभिन्न सिलिकेटों का
मिश्रण है । जब यह गला हुआ मिश्रण ठंडा होता है
तो सिलिकेटों का ठोस विलयन प्राप्त होता है, उनका
क्रिस्टलन नहीं होता । यदि क्रिस्टलन हो तो काँच
टूटने गला होगा। यही कारण है कि काँच तेयार
करते समय ऐसे खनिज चुने जाते हैं जिन पर ताप में
परिवत॑न का प्रभाव तीब्रता से न होता हो ।
विभिन्न कार्यों के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के काँच
भ्रावदयक होते हैं । उदाहरणार्थ काटने के लिये तेज
धार मेँ प्रयुक्त काँच को कठोर होना चाहिए। यह
ज्ञात है कि यदि सोडियम आवसाइड के वजाय पोटे-
शियम आवसाइड का प्रयोग किया जाय तो कठोर
काँच बनेगा। अत्यधिक कठोरता लाने के लिये बेरियम,
सीसा आदि का प्रयोग किया जाता है। ऐसा काँच
पिलंद कॉच कहलाता है। श्राजकल पाइरेक्स काँच!
का अत्यधिक प्रचलन है। प्रयोगशालाओों में इसके बने
उपकरणों की काफी खपत है । 'पाइरेकक््स! वास्तव में
व्यापारिक नाम है। ऐसे काँच में सोडियम तथा
ऐल्यूमिनियम के बोरेट तथा सिलिकेट मिले रहते हैं ।
बोरेट की उपस्थिति के कारण काँच ऊष्मा के प्रति
सह्य हो जाता है। भोजन बनाने के सभी बतंन इसं
प्रकार के कांच से बनाये जा सकते हैं ।
रंगीन काँच मैंगनीज, ताम्र, लोह आदि के
झ्राक्साइड मिलाकर तैयार किया जाता है। रंगीन काँच
जल पीने की गिलासों या तश्तरियों में प्रयुक्त होता है ।
অন্ন সহন অন্ত उठता है कि क्या कॉँच में प्रयुक्त
रासायनिक पदार्थ भोजन पकाते समय बुरा प्रभाव नहीं
डाल सकते । उत्तर होगा --नहीं । फलत: काँच के पात्र
सर्वोत्तम होते हैं।साथ ही वे सरलता से साफ भी
किये जा सकते हैं जिससे उनमें गंदगी नहीं रह पाती .।
यही नहीं, जिन बत॑नों में खाना पकाया गया हो, उन्हीं
को साफ करके खाने के लिये प्रयुक्त भी किया जा
सकता है ।
किन्तु एक सावधानी बरतनी होगी । चूक्रि कच
ऊप्मा का सुचालक नहीं इसलिये इसके पात्रों में बिना
पानी के भोज्य पदार्थ या तो लग जावेंगे या जलने
लगेगे । एकाएक पानी डाल देने पर वे टूट भी सकते
हैं। यही सबसे बड़ा दोष है । किन्तु इतने पर भी काँच
के बर्तनों का प्रयोग बढ़ेगा क्योंकि धातुप्नों का उपयोग
युद्ध की सामग्री तैयार करने के लिये सीमित रखना
होगा
রবীন मिट्टी से बतेन
चीनी मिट्टी के बतँन मिट्टी के बत॑नों से भिन्न होते
हैं। वे श्रधिक चमकदार, खटाऊ, कठोर एवं अप्रवेद्य
विज्ञान
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