विज्ञान - (नवंबर- 2002) | Vigyan - (Nov- 2002)
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसके अलावा पत्र-पत्रिकाएँ, टीवी, विज्ञापन आदि ये
सब भी आज जो कुछ भी परोस रहे हैं, वो भी बच्चों को
असमय परिपक्व कर रहे हैं और परिपक्व लोगों को
विकृत कर रहे हैं। आप बताइए, अचानक इस देश में
विश्वसुंदरियों की बाढ़ कैस आ गई ? विश्वसुंदरियों के
बहाने सौ करोड़ की आबादी वाले इस देश में बहुराष्ट्रीय
कंपनियाँ कॉस्मेटिक का बाजार बना रही हैं। आज जैसे
क्रिकेट में मैच फिक्सिंग का भंडाफोड़ हुआ है वैसे ही
एक दिन आप सुनेंगे कि इन विश्वसुंदरियों को चुनने में
आयोजकों-प्रायोजकों-निर्णायकों की क्या साँठ-गाँठ
रहती है| अब आज हर लड़की लारा दत्ता, ऐश्वर्या राय,
सुष्मिता सेन बनने के सपने देख रही है। कोई मदर
टेरेसा बनना नहीं चाहती। इस बाजार व्यवस्था ने भी
बचपन को जवानी के सपने दे दिए हैं।
समस्या के हर पहलू पर सब तरफ से चर्चा
करने के बाद काका ने उस पर समाधान की रोशनी
डालते हुए कहा- भारत के मनीषियों ने एक व्यवस्था
दी थी जिसमें जीवन के चार सोपान दिए थे- ब्रह्मचर्य,
गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास | आज ब्रह्मचर्य की नींव
कमजोर पड़ गई है। इसलिए गृहस्थ का भवन भी
जर्जर है। वानप्रस्थ और संन्यास तो लुप्तप्राय हैं, नगण्य
हैं।
समस्या जहाँ से पैदा हो रही है समाधान वहीं
से शुरू करना पड़ेगा- शिक्षा व्यवस्था से | पहली बात
कि बच्चों को स्कूल में दाखिल करने की उम्र बढ़ानी
पड़ेगी। और यदि उम्र नहीं बढ़ानी है तो कम से कम
छोटी कक्षाओं में ताकिंक और गणितीय विषय हटाने
होंगे। जब वे दस-ग्यारह की उम्र के हो जाएँ तब उन्हें
ये विषय पढ़ाए जाएँ | विद्यालय प्रकृति के संपर्क में हो ।
इसमें बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास स्वाभाविक
रूप से होगा | रवींद्रनाथ टैगोर ने 'शांति-निकेतन' की
स्थापना करके ऐसा एक प्रयोग किया था कि उसका
परिणाम यह रहा कि अकेले शांतिनिकेतन ने जितनी
प्रतिभाएँ देश को दी हैं उतनी प्रतिभाएँ भारत के सारे
विश्वविद्यालय मिलकर भी नहीं दे पा रहे हैं। सुप्रसिद्ध
चित्रकार नंदलाल बोस ओर अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन वर्हौ
की दन हे। हो सकता है मेरे कथन में अतिशयोक्ति हो,
लेकिन कहने का मतलब इतना ही है कि विद्यार्जन
नवम्बर 2002
प्रकृति के संपर्क में हो क्योंकि बच्चों में प्रकृति के प्रति
स्वाभाविक सजगता होती है। बच्चों की सबसे बड़ी
विशेषता यह होती है कि उनकी पाँचों इंद्रियाँ पूर्ण
सजग और संवेदनशील होती हैं। आप बच्चे के साथ
सड़क पर जा रहे हों और किनारे लगे किसी पेड़ पर
कोई चिड़िया बोले, तो शायद आप अपने विचारों में
खोए रहें, आपको ख्याल न हो कि चिड़िया बोल रही
है, लेकिन बच्चा तुरंत गर्दन उठाकर देखेगा। वह पेड़
पर खिले फूल पर भी ध्यान देगा, किसी ठेले पर खिले
फलों की खुशबू भी उसे आकर्षित करेगी। आप इन
सबसे बेपरवाह विचारों मं खोए रह सकते हँ क्योकि
आप वर्तमान में होते नहीं | बच्चे सतत वर्तमान में रहते
हैं। बच्चे आपको चंचल दिखते हैं लेकिन वैज्ञानिकों का
अध्ययन कहता है कि बच्चों के मस्तिष्क में सबसे कम
तरंगें होती हैं।
वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क की तरंगों का अध्ययन
किया है, जिन्हें चार प्रकार का पाया गया है-- बीटा,
एल्फा, थीटा, डेल्टा |
13 से 25 साइकिल प्रति सेकेंड की तरंगे
बीटा श्रेणी में रखी गई हैं। यह तरंगें एक परिपक्व
आदमी में होती हैं | ध्यान व एकाग्रता के समय मस्तिष्क
की तरंगों को 8 से 12 साइकिल प्रति सेकेंड नापा गया
है जिन्हें एल्फा श्रेणी में रखा गया है। इस समय
मस्तिष्क की ग्रहणशीलता कई गुणा बढ़ जाती है।
और भी गहरे ध्यान की अवस्था में ये तरंगे 4
से 8 साइकिल प्रति सेकेंड हो जाती हैं जिन्हें थीटा नाम
दिया गया है | सबसे सुखद आश्चर्य की बात यह है कि
मस्तिष्क की तरंगों का जो परिमाण गहन ध्यानियों का
मापा गया है वही परिमाण दो से पाँच वर्ष की आयु के
बच्चों का मापा गया है|
दो वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की तरंगें
दशमलव से 4 साइकिल प्रति सेकेंड नापी गई हैं, जिसे
लगभग समाधि की अवस्था कहा जा सकता है। यह
डेल्टा तरंगें सामान्य व्यक्ति में गहन निद्रा अथवा प्रसुप्ति
में नापी गई हैं।
इसीलिए कह रहा हूँ कि बच्चे शरीर से चंचल
दिखते हैं लेकिन मस्तिष्क के तल पर वे एक उन्नत
योगी की तरह शांत होते हैं। उनके कोश-कोश में
विज्ञाग 14
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