मानव की कहानी भाग - 2 | Manav Ki Kahani Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : मानव की कहानी भाग - 2  - Manav Ki Kahani Bhag - 2

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामेश्वर गुप्ता - Rameshwar Gupta

Add Infomation AboutRameshwar Gupta

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
५२४ मानव की कहानी उत्थान क्छ है एवं कु विदोष नई उद्भावनाये, नये विचार लेकर वह्‌ उठता है । इस चल चित्रपट पर हमने देखा-४-५ लाख वषे पहिले जब मानव का आगमन हुझ्ला था, तब तो वह केवल अद्धं-मानव की स्थिति में था, वृक्षों की छाल या पत्ते या जानवरों की खाल से श्रपना तन ढकता था; कद, मूल, फल, कच्चा मांस खाताथा; आग का भ्राविष्कार कर चुका था एवं मांस भूनने भी लगा था; किन्तु सभ्यता एव विचार की स्थिति श्रभी तक उसमें उत्पन्न नहीं हो पाई थी, 'स्व' को चेतना भी उसमें तन हो। फिर अनुमानत. ५०-६० हजार वषं पूवं वास्तविक मानवका ग्राविर्भाव हुआ-हजा रों वर्षों तक उसकी भी स्थिति प्रायः भ्रसभ्य रही; शिकार के लिए एवं अपनी रक्षा के लिये; पत्थर एवं चकमक के वह सुन्दर, सुघड़ औजार बनाने लगा था, गुफाओश्रो में रहते रहते गुफाञं की दीवारों पर चित्रांकन भी करने लगा था,-किन्तु संगठित जीवन, सुसपष्ट 'स्व' की चे तना एवं विचार का विकास उसमें प्रायः नहीं हो पाया था; फिर भ्राजसे प्रायः १०-१२ हजार वषं पूवं वह्‌ इस स्थिति मेँ पहुंचा, জন वह चकमक के श्रलावा तांबे, एव कास्यके ग्रौजार एवं हयियारमभी बनाने लगा था, खेती का आविष्कार कर चुका था, पशु-पालन करने लगा था, रहने के लिए कच्चे घर बनाने लगा था, चाक का आराविष्कार कर चुका था एवं उस पर मिट्टी के सुन्दर बतंन बनाता था, उसमें श्रपने जीवन और रहन सहन के प्रति चेतना का विकास हो चुका था। भिन्न भिन्न पुरखाश्रों के व्यक्तित्व से लोग श्रपना वंशानुगत संबंध जोड़ने लगे थे प्रौर इस प्रकार उनमें जातिगत भावना ( 7108] (00718- 01090810698 ) का विकास हो चूका था । कठोर प्रकृति--वर्षा, तूफान, बिजली, प्रांधी से; मृत्यु एवं स्वप्न-दृश्यों से भयातुर एवं विस्मित होकर, वे लोग जीवन श्रौर समूह की सुरक्षा की कामना से स्थानगत एवं जाति- गत देवताश्रों की कल्पना करने लगे थे,-श्रजीब भ्रजीब श्राकार की पत्थरों की मूर्तियों में, वृक्षों, नागों श्रौर पशुओ्रों में देवताश्रों का श्रस्तित्व माना




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now