भक्तामर-महामराडल-पूजा | Bhaktamar-Mahamaradal-Pooja
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री भक्तामर महामरूण्ड्ल पूज[
विध्नान् निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा)
यह मन्त्र पढ़कर स्व दिशाओ्रों में पीले सरसों क्षेपे ।
परिणामनशुद्धि-मन्त्र
, विधि विधातुं यजनोत्सवे5हं, गेहादिसूरच्छामपनोदयामि ।
अनन्यचित्ताकृतिमादधामि, स्वर्गादिलक्ष्मीमपि हापयामि ।
यह पद्म पढ़कर प्रतिज्ञा करे कि में इस विघान पर्यन्त
व्यापारादि कौ चिन्ता छोड़ एकाग्रता से कार्य करूँगा ।
रक्षासुत्रवन्धन मन्त्र
मद्धलं भगवान्वीरो, मङ्गलं गौतमो गरी ।
मङ्खलं कुन्दकुन्दाद्या, जनवर्मोऽ स्तु मङ्धलम् ।
गरो हीं पश्चवणं सूत्रेण करे रक्षावन्धनं करोमि ।
तिलक-मन्त्र
थ्रों हां हीं हू हौ हः मम
सर्व्धिगुद्धि कुरु कुरु स्वाहा ।
- यह मन्त्र पढ़कर अद्भुशुद्धि के लिये तिलक लगाना चाहिये ।
रक्षा-मन्त्
श्रं नमोऽहूते सर्वं रक्ष रक्ष ह. फट् स्वाहा ।
पीले सरसों और पुष्पों को इस मन्त से सात वार मन्वित कर
फूंक देकर सर्व पात्रों पर छिटकना चाहिये ।
| सङ्कल्प सन्तर
ग्रो हीं मघ्वलोके जम्बृद्रीपे भरतक्षत्रे आयंखण्डे' 7
० देशे...“ नगरे “~ -चैत्यालये ` श्रीवी रनिर्वाण-
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