भक्तामर-महामराडल-पूजा | Bhaktamar-Mahamaradal-Pooja

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री भक्तामर महामरूण्ड्ल पूज[ विध्नान्‌ निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा) यह मन्त्र पढ़कर स्व दिशाओ्रों में पीले सरसों क्षेपे । परिणामनशुद्धि-मन्त्र , विधि विधातुं यजनोत्सवे5हं, गेहादिसूरच्छामपनोदयामि । अनन्यचित्ताकृतिमादधामि, स्वर्गादिलक्ष्मीमपि हापयामि । यह पद्म पढ़कर प्रतिज्ञा करे कि में इस विघान पर्यन्त व्यापारादि कौ चिन्ता छोड़ एकाग्रता से कार्य करूँगा । रक्षासुत्रवन्धन मन्त्र मद्धलं भगवान्वीरो, मङ्गलं गौतमो गरी । मङ्खलं कुन्दकुन्दाद्या, जनवर्मोऽ स्तु मङ्धलम्‌ । गरो हीं पश्चवणं सूत्रेण करे रक्षावन्धनं करोमि । तिलक-मन्त्र थ्रों हां हीं हू हौ हः मम सर्व्धिगुद्धि कुरु कुरु स्वाहा । - यह मन्त्र पढ़कर अद्भुशुद्धि के लिये तिलक लगाना चाहिये । रक्षा-मन्त् श्रं नमोऽहूते सर्वं रक्ष रक्ष ह. फट्‌ स्वाहा । पीले सरसों और पुष्पों को इस मन्त से सात वार मन्वित कर फूंक देकर सर्व पात्रों पर छिटकना चाहिये । | सङ्कल्प सन्तर ग्रो हीं मघ्वलोके जम्बृद्रीपे भरतक्षत्रे आयंखण्डे' 7 ० देशे...“ नगरे “~ -चैत्यालये ` श्रीवी रनिर्वाण-




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