दो विधार्थियों का संवाद् | Do Vidharthiyon Ka Sanvad
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
489 KB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६)
शुना अधिक मिलता है। मैं कई दिनों से इस बाद
का अनुभव कर रहा हूँ. कि अपने नगर के
पास में एक बढ़ा छात्रावास हो जहा पर सुयोग्य
विधार्थी शिक्षा पाकर अपना और अपने देश का
सुधार करें | ड़ ॥
उ्रषाधयचन््र-“ नदीं मालूम ्ापको देशं
सुधार की इतनी चिन्ता क्यो लगी हे, न मालुम
ये दूसरोंके पुत्र पदकर आपके किस काम
आयेंगे १ ”
विधानेद--“ मित्र शायद तुम्हें यह मालूम
नहीं है कि अपन लोग सदा सवा ही फी यातें
सोचा करते हैं। मेण तो ऐशा विश्वास है
कि पस्सारथ जैसा और कोई कार्य दुनियों में
करने योग्य ही नहीं दै। ऐसे सावेजनिक कार्यों
से इस लोक और परतोक दोनों में लाम दी लाभ
है ।' ऐसा कौन हुर्भागी होगा जो द्रव्य प्राप्त कर
के भी ऐसे परोपकारी काये सें व्यय न करे ॥ ?
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