दो विधार्थियों का संवाद् | Do Vidharthiyon Ka Sanvad

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : दो विधार्थियों का संवाद् - Do Vidharthiyon Ka Sanvad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुनिश्री गुणसुन्दरजी महाराज - Munishree Gunsundarji Maharaj

Add Infomation AboutMunishree Gunsundarji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(६) शुना अधिक मिलता है। मैं कई दिनों से इस बाद का अनुभव कर रहा हूँ. कि अपने नगर के पास में एक बढ़ा छात्रावास हो जहा पर सुयोग्य विधार्थी शिक्षा पाकर अपना और अपने देश का सुधार करें | ड़ ॥ उ्रषाधयचन््र-“ नदीं मालूम ्ापको देशं सुधार की इतनी चिन्ता क्यो लगी हे, न मालुम ये दूसरोंके पुत्र पदकर आपके किस काम आयेंगे १ ” विधानेद--“ मित्र शायद तुम्हें यह मालूम नहीं है कि अपन लोग सदा सवा ही फी यातें सोचा करते हैं। मेण तो ऐशा विश्वास है कि पस्सारथ जैसा और कोई कार्य दुनियों में करने योग्य ही नहीं दै। ऐसे सावेजनिक कार्यों से इस लोक और परतोक दोनों में लाम दी लाभ है ।' ऐसा कौन हुर्भागी होगा जो द्रव्य प्राप्त कर के भी ऐसे परोपकारी काये सें व्यय न करे ॥ ?




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now