ग़ालिब | Ghalib

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Ghalib by क़ाज़ी अब्दुस्सन्तार - Qazi Abdul Sattar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सच्चे जड़ाऊ पर हंसती हुई उंगलियो की याकूती चुटकी जमीनो-आसमान के ममले हल कर रही थी । गर्दन का हल्का-सा ठहरा खम कायनात के पुरे वुजूद पर भारी था । फिर वह उठी जैसे फूल से खुशब्रु उठती है । वह लहरें लेगी हुई दुसरे आसन पर पहुंची थी कि नवाव ने पहलू से अशफियों का तोड़ा उठाकर मजर कर दिया । सलाम किया तो इस तरह कि रुख उधर था और आख इधर । फिर वहुआहिस्ता-आहिस्ता घुमेरिया लेती रही फिर साज़ों की आवाज के साथ-साथ उनके चमकर तेज़ होते गये । तेज़ होते गये कि टके हुए मोहियों से पणवाज के भारी दामन उठने लगे। उठ्ते-उठ्ते कमर के वराबर आ गये। सुखें रेशमी जेरजामा बिजलियों को अपने- आप में भमेटे गदिश करता रहा और वह सब कुछ जो मौजूद था उसके एंक बुजूद तक महदूद होकर रह गया । अभी बह तस्लीम कर रही थी कि चोबदार की आवाज बुलंद हुई डर चिरागें दूदमान तैमूरी साहवे आलम सानी आला हजरत सिराजुद्दीन मोहम्मद जफर सारी महफिल खड़ी हो गयी । नवाब ने सदली से उतरकरतीन सलाम किये और हाथ बाघ लिये । खानम सुल्तान ने कोरमिश अदा करके चांदी के थाल से गगा-जमनी गुलाबपाश उठाकर छाहज़ादे के दामन मुअत्तर किये । हुस्नदान से मुश्क ने निकल कर आस्तीनों को बोसा दिया और हाथ जोड़कर ख़ानम सुल्तान ने अर्ज किया साहिबे आलम ने फरमान भेज दिया होता लौडी दरे दौलत पर हाज़िर हो जाती । सवारी का इघर से गुज्धर हुआ तो चुगताई जान की आवाज़ ने वाजू पकड़ कर उतार लिया । चुगताई जान तसलीम को झुक गयी । नवाब ने दोनों हाथो से पेश- चाई की और संदली पर बिठा दिया । नवाव का एक खादिम पंखा हिलाने लगा दूसरा चवर लेकर गाव के पीछे खड़ा हो गया शाहज़ादे के इशारे पर वे दोनो उसके दाहिने वाजू पर बैठ गये । वायी त्तरफ खानम सुल्तान घुटनो पर बढ गयी चुगताई जान ने दस्तबस्ता इजाज़त मागी। शाह- जादे ने दाहिना हाथ उठाकर इजाजत के साथ हुक्म दिया ८ गारिएरं




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