ज्ञानसागर | Gyansaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.47 MB
कुल पष्ठ :
20
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सटीक 1
किसी जीवके बांधने सारसे अदिसें आनद मानना या ऐसे
विचार स्वयं करे । २ - मपानेद किये संटम आनद माने या खुद
झंडे विचारादि को | ३--चीयनिद किये चोरीमे, चारकी कथा -
आगि आनंद माने या स्वय बिच करना आदि | फ्-परिय्रदानद
करिए भनघान्यादिकर्म आनंद गाने या इसीके विचारमें रहना यट
पेनम गुणम्थान तक होना है, छठेमें हो तो सयपर छूट जाय, यर दोनु
दे्यानि पापबन्पके कारण त्याउय है ।
घमध्यान, शुक्तुध्यान ।
सुत्त्यमग्गणाण महव्वयाण च भावणा सम्में ।
गयसंकप्पदियप्पं सुकज्लाणा ॥ १२ ॥!
सूनामंमार्गणानों ने भावना धरम |
गतसकत्पविकत्प सन्तन्प ॥ ९ ॥
शक ययोपाई ।
सूत्र तध मागण चत साना, यह सत्र ध्याना '
सं विकरप जु होड़, झुरुध्यान जानो तुम सीई ॥ १२ ॥
सूनार्थ कहिये द्लादशागरुप जिनवाणी तथा ४ गति, ५ डंद्रिय.
६ काय १५ योग, £ वेद, २५ कपाय, ७ संयम, ८ शान, ४
६ लेस्या, २ मन्याभव्य, £ सम्यक्त, २ सेनी-ब्मेंनी, २
आहारक अनाहाग्क ऐसे १४ मार्गणा ५ महात्रतोकी २५ भावना
तथा १४ गुणस्थान, १२ भावना, १२ धर्म इत्यादि चिंतवन धर्म-
ध्यान है । संकल्प विकल्प रहित आत्मचितवन है । सो
धघर्मध्यानके भी च्यार मेद है । जिनेन्द्की आज्ञाका चित्ततन-आजा-
विचय-१ । कमाँके उदय किन २ कर्मोंसे केसे केसे आते है. उनसे
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