ज्ञानसागर | Gyansaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सटीक 1 किसी जीवके बांधने सारसे अदिसें आनद मानना या ऐसे विचार स्वयं करे । २ - मपानेद किये संटम आनद माने या खुद झंडे विचारादि को | ३--चीयनिद किये चोरीमे, चारकी कथा - आगि आनंद माने या स्वय बिच करना आदि | फ्-परिय्रदानद करिए भनघान्यादिकर्म आनंद गाने या इसीके विचारमें रहना यट पेनम गुणम्थान तक होना है, छठेमें हो तो सयपर छूट जाय, यर दोनु दे्यानि पापबन्पके कारण त्याउय है । घमध्यान, शुक्तुध्यान । सुत्त्यमग्गणाण महव्वयाण च भावणा सम्में । गयसंकप्पदियप्पं सुकज्लाणा ॥ १२ ॥! सूनामंमार्गणानों ने भावना धरम | गतसकत्पविकत्प सन्तन्प ॥ ९ ॥ शक ययोपाई । सूत्र तध मागण चत साना, यह सत्र ध्याना ' सं विकरप जु होड़, झुरुध्यान जानो तुम सीई ॥ १२ ॥ सूनार्थ कहिये द्लादशागरुप जिनवाणी तथा ४ गति, ५ डंद्रिय. ६ काय १५ योग, £ वेद, २५ कपाय, ७ संयम, ८ शान, ४ ६ लेस्या, २ मन्याभव्य, £ सम्यक्त, २ सेनी-ब्मेंनी, २ आहारक अनाहाग्क ऐसे १४ मार्गणा ५ महात्रतोकी २५ भावना तथा १४ गुणस्थान, १२ भावना, १२ धर्म इत्यादि चिंतवन धर्म- ध्यान है । संकल्प विकल्प रहित आत्मचितवन है । सो धघर्मध्यानके भी च्यार मेद है । जिनेन्द्की आज्ञाका चित्ततन-आजा- विचय-१ । कमाँके उदय किन २ कर्मोंसे केसे केसे आते है. उनसे




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