बाल-मनोविकास | Bal-Manovikas

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Bal-Manovikas by लालजीराम शुक्ल - Laljiram Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला प्रकरण विषय-प्रवेश बाल-समन का अध्ययन जितना ही महत्वपूर्ण है उतना ही अनजाना भी है । भारतवर्ष में तो इस विषय के शञाता बिरले ही लोग हैं| जिन लोगों ने इस विपय का अध्ययन किया है उनमें से इने-गिने ही लेखकों की श्रेणी में आते हैं। बाल-मनोविज्ञान में जिनकी रुचि है ऐसे भारतीय विद्वान प्रायः देशी भाषा में अपने विचारों को प्रकाशित करने की चेश नहीं करते । यदि वे अपने विचारों को समय-समय पर प्रकट कंरते भी हैं तो एक विदेशी भाषा में | इससे देश' का अधिकांश जनसमुदाय इन विद्वानों के विचारों से श्रममिज्ञ रह जाता है। अँगरेजी: भाषा में तो बाल-सनोविज्ञान की सहर्सों पुस्तकें हैं श्लोर सैकड़ों प्रतिदिन लिखी _ जा रही हैं। क्‍या यह दुःख का विषय नहीं है कि हमारे देश की भाषाओं में इस विषय पर दो-चार पुस्तके भी न हों ! शिक्षित समुदाय के मन में बाल-मनोविज्ञान-सम्बन्धी विषयों के संस्कारों का पूर्ण अभाव रहने के कारण लेखक को विषय-परिचय कराने में कुछ कंठिनाई पड़ना स्वाभाविक है। दूसरे जो. व्यक्ति श्रंगरेजी भाषा के जानकार हैं वे यह जानते हैं कि मनोविज्ञान एक जटिल विपय है, इससे वे इस प्रकार के अध्ययन से कोसों दूर रहते हैं। उनके दृष्टिकोण को परिवर्तित करना ओर बाल-मन के अध्ययन मैं उनकी रुचि बढ़ाना कितना कठिन - प्रश्न है, यह विद्वान पाठक- ही समभ सकते हैं। .परन्तु हमे यह. कदापि न. भूलना चाहिये कि बाल-मन का . अध्ययन कितना ही कठिन क्यों न हो; फिर भी प्रत्येक शिक्षित माता-पिता, : - अभिभावक और, शिक्षक के लिये वह परम आवश्यक है | क्या यह लजा की बात नहीं कि हम ब्रेज़ील ओर अलास्का के निवासियों की तरह रहन-सहन के. विषय मेँ जानने की चेष्टा तो करते हैं, किन्तु उन परमप्रिय बालकों के विषय में जानने की रुचि नहीं रखते जो प्रति-दिन हमारे साथ रहते और. हमको सुखी बनाते हैं ! हरबर्ट स्पेंसर का कथन है कि प्रत्येक व्यक्ति को बाल-मनोविशान - भलीभांति सिखाया जाना चाहिये । इसके ज्ञान के बिना किसी भी. मनुष्य का . जीवन पूर्ण नहीं कहा जा सकता । बाल-मन के अध्ययन से बालक- के लालनं- पालन में कितनी सह्ययता मिलती है; यह आगे की पंक्तियाँ से स्पष्ट हो जायगा ) -




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