प्रथमावृति की प्रस्तावना | Prathama Vriti Ki Prastavana

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Book Image : प्रथमावृति की प्रस्तावना  - Prathama Vriti Ki Prastavana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) देना यह तराक्ृतव्यहे, तलब अमालख ऋषिजी स्वशिष्य सहित श्री -तपस्वी जी के साथ विचरन रुग. सं १९६१ का चतुर्मांस श्री सिंघके अभ्नह के बंबइ ( हलुमान गली मे किया, यहां जैन स्थानक वासी रत्न चिन्ता मणी मिल उक स्थापना ह्‌, ओर इस .मंडटकी तफल महाराज श्रीममोरख ऋषिजी की बनाइ हुड “जेनामुस्प सुधा? नान्न छोटासी पुस्तक प्रासद्ध हुड. यहां सोती ऋषि जी स्वभस्य हुये. उप वक्तयहां क पन्नासा ली कीमती काया बंबइ गयेथे,वहां महाराज श्री जीके .. दर्शन कर. विनेती करी के दक्षिण हेद्राबाद में जनी-- यों के घर तो बहुत हैं, परन्तु सुनीराज का आगम র্‌ चिलकुछ नहीं है, ज्ञो आप पधारोंगे तो बडा उपकार ৯৬ ৫ ५ होगा, यह बात महाराज श्री को पसंद आइ, चतु- सास बाद वेवड से विहार कर. इगत पुरी पधार, चतुरमास किया, और यहां के श्राबक्र मूल्चेदजी टॉ- टायापगेर ने महाराज श्री की की बनाई घमे तत्वसंग्रह'. नासे ग्रन्थ की १५०० प्रर्तों छपवा केअमुल्य भटदी वहां स विहार कर वेज्ञापुर ( औरंगाबाद ).आये य हां के श्रावक मीखमर्चन्दजी संचेती ने “घर तत्व অন” वी गुजरातीम १२०० प्रतों छपवा्के अमुल्य উহ লু, অহা से ज्ञाऊण पचारे ओर आग विहार क




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