विमल विलस | Vimal Vilash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१६) ~~~ -- ~~~ श्रीमद्गवद्गीता के मूल सिद्ठान्त , १ दर एक मलुप्य फा यह धर्म है फि यह अपना फतंव्य बिना फिसी स्वार्थ के निज्न कर्तव्य मानकर पॉलन फरे, ऐसा फरने दी से सिद्धि प्राप्त ছীবী ই। २ मोक्ष पाने फे हेतु दे। निष्ठा या परम मागं हें-( १) फर्म येग और (२) खाख्य येग या सन्यास योग । एन देनो फे द्वारा मुफ्ति दो जाती है और इन में अस्तर भी घहुत थोडा है पर फिर भो इनमें येग उत्तम है फ्नोंफि पद सांस्य से सदल और लेकस प्रद सदायफ है। ই फर्मग्रेग दारा सिद्धि प्राप्त फरने फे लिये यह जरूरी है कि-- (भ) फरने न करने योग्य कर्मो को पटिचान फरफे फरने येग्य फर्मों फो धारण और न फरने येग्य कर्मों फो त्याग किया जाय । (म) करने योग्य फर्मो फो सदा निष्काम युद्धि से किया जाय नर्धत्‌ फर्म फे फछ से प्रयोजन न रख फर उस फो फेपल লিজ জব मान फर फिया जाय। ऐसा फरने से फर्म से बन्धन नहीं दोता फ्यौफि फर्म आप बन्धन नहीं डालता घढिफ फर्ता फी भापना घन्धन उत्पन्न फरती है। (ञ्ञ) जे सफाम फर्म फरते हैं घद्द उनका फल भैगने फे हेतु देह धारण फरफे आवागमन के चक्कर स पड़ते हैं इसल्यि फामना का त्याग उचित दै। (व) जे फम फिया जाधे यह यह समझ फर फिया जाघे फि में ईश्वर है फा अशी (मात्मा) कर्म यन्घन से खतन्तर है, पररूत्ति फे शण यह রর फर्म फराते हैं अर्थात्‌ फर्म मे अकर्ता भाष द्वाना उचित है। यही चै णम्य भाय सच्चा सन्‍्यास है। ४ फरने न फरने येग्य कर्मे कौ पहिचान निज घुद्धि से होती है परन्तु बुद्धि को यद् पहचान तथही पूर्ण रीति से होतो है कि जब यद शुद्ध और स्थिर हो, इसलिये चुद्धि को शुद्ध और स्थिर फरना चाहिये। ५ घुद्धि फो शुद्धि फे लिये मन, इन्द्रिय निश्रद और कान्‌ विप्रान होना श्रि मौर साथ ही मिति साय सी 1 ६ मन्‌ इन्द्रिय निग्र् पाचन्जलि-याग अभ्यास, द्िकुटि ध्याम, दिषुटी- ध्यान सादिक से हेता है परन्तु इनसे केवर मनद इन्धे से घ्म करने स्थातु




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