प्रसादजी की कला | Parsadg Ki Kla
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সলাহৃলী ফী কলা ९१३
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১৭
फर देते हैं। यही उनके गीतिकाब्य की सफलता हैं ।
` ९ स्कन्दगाम गुप मे चरित्र की सघपमयी भावना में भी जहाँ गीतों
की सुप्टि हुई है, वहाँ ছলাহুজী बड़े লজ क्वि
इषप्टिगत होते है। ५.८ `
प्रसादजी उपन्यास-लेखक ओर कद्दानीकार भी थे । उनका
_ ऊंकाल उपन्यास और आकाशदीप कद्दानी-सम्रह हिन्दी-साहित्य
की निधियों हैं। जीवन की आलोचना कितने रूप ले सकती हैं,
यह बात उनकी कहानियों से स्पष्ट हैं। इन समस्त आलोच-
नाओं सें हिन्दू-संस्कृति की छाप है। उनका ऐतिहासिक
अध्ययन इतना विस्द॒त हैं. कि वह उनके साहित्य तान की
विपुलता में समानान्तर होकर एक दो गया है। इसोलिए
उलकते, थे भावना का स्वाभाविक प्रदाह्य हो पंक्तियों में प्रदर्शित
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साटको ओर कहानियों मे यह एतिहासिक तथ्य ने ता तत्वान्वेपी
की नीरसता देता है और न उपदेशक दो स॑त्रता ,
समस्त इृष्टिकाण कला का वहरणगी रूप घार
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उपन्यास ओर कहानियों म प्रसाद्ञी आध्यात्मिकता का नहा
भूलते। कल्पना जगन লিলা ক লু अवश्य करते दे
पर ত্র ওল लोक्क्ला म नहा सन्ने उनके स्नान
सामग्री है एक अध्यात्मिक्त सक्षेत ।
२.
3
प्रधानत प्रसादज्ी हमारे साहित्य के दाशनद् कचि थ |
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