सरल राजयोग | Saral Rajyog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
449 KB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मल राजयोग
दूसरी है सत्य भर भगसप्रामि की तीन आझाह्ठा | जख में वे
भलुष्य वो जैसे प्राणयायु की इच्छा से ब्याकुख्ता होती है ठीक कैसे ही
स्यावुल् हो। जाओ। उसी प्रद्र तीज रूप से भगभान को चाहों |
सीमरी बात में छत. शिक्षाये ह1
(१) मन को बहिमुंख न दोने देना |
(३) मन को अस्तमुंख करके एक््राप्त बनाना |
(३) नि्शिध सद्दिष्णुता या पूर्ण तितिक्षा।
(४) अनन्यता--मिवाय मगवान् र ओर युद्ध न चाना |
(५) समदि रिस ण्वः वस्तु को ठकर उनम संदमद्विचार
को! ममाधान न होने तक ने छोड़ना | हम सत्य वो! जानना चाहते हैं,
ইলিসলূজি यो नहीं; इन्द्रियदृत्ति पशुचर्म है, मनुष्य उसमे पत्नुष्ट नहीं रह
मयता | मनुप्प अग्ोत् मननझोक; जब तक বুল को नहीं जीत लेता,
जव तकर षह प्रकारा फो नदी प्राप्त कता, नत्र तकर वे युद्ध करा ही
रदेणा। इंधा बात दये विख्युर् छोड़ दो । समाज और छोकात की पूजा
हीं। मूर्तिपूजरता है| आत्म खी-युरुष के भेद से रहित, जानिभेद-रहित
और देदा-काठ के मेद से परे है।
(६) सदा आ्मखच्य की चिन्ता करो | कुसेस््कार से बचे,
परमपरा से ५मैं नीच हूँ”, “मैं नीच हैं” इस तरद्द सोचकर अपने को
শা মল অনয ভান) অন অন্ধ, পল ঈ লাশ अभेद ज्ञान (६ साक्षास्कार या
अपरोक्षानुभूति ) न हो जाय तब तक तुम ठीक जो हो उसी को सोचो |
द
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