सरल राजयोग | Saral Rajyog

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Saral Rajyog by पृथ्वीनाथ शास्त्री - PrithviNath Shastriस्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

Add Infomation AboutSwami Vivekanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मल राजयोग दूसरी है सत्य भर भगसप्रामि की तीन आझाह्ठा | जख में वे भलुष्य वो जैसे प्राणयायु की इच्छा से ब्याकुख्ता होती है ठीक कैसे ही स्यावुल् हो। जाओ। उसी प्रद्र तीज रूप से भगभान को चाहों | सीमरी बात में छत. शिक्षाये ह1 (१) मन को बहिमुंख न दोने देना | (३) मन को अस्तमुंख करके एक््राप्त बनाना | (३) नि्शिध सद्दिष्णुता या पूर्ण तितिक्षा। (४) अनन्यता--मिवाय मगवान्‌ र ओर युद्ध न चाना | (५) समदि रिस ण्वः वस्तु को ठकर उनम संदमद्विचार को! ममाधान न होने तक ने छोड़ना | हम सत्य वो! जानना चाहते हैं, ইলিসলূজি यो नहीं; इन्द्रियदृत्ति पशुचर्म है, मनुष्य उसमे पत्नुष्ट नहीं रह मयता | मनुप्प अग्ोत्‌ मननझोक; जब तक বুল को नहीं जीत लेता, जव तकर षह प्रकारा फो नदी प्राप्त कता, नत्र तकर वे युद्ध करा ही रदेणा। इंधा बात दये विख्युर् छोड़ दो । समाज और छोकात की पूजा हीं। मूर्तिपूजरता है| आत्म खी-युरुष के भेद से रहित, जानिभेद-रहित और देदा-काठ के मेद से परे है। (६) सदा आ्मखच्य की चिन्ता करो | कुसेस्‍्कार से बचे, परमपरा से ५मैं नीच हूँ”, “मैं नीच हैं” इस तरद्द सोचकर अपने को শা মল অনয ভান) অন অন্ধ, পল ঈ লাশ अभेद ज्ञान (६ साक्षास्कार या अपरोक्षानुभूति ) न हो जाय तब तक तुम ठीक जो हो उसी को सोचो | द




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now