शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन | Shaikshik Aur Vyavsayik Nirdeshan

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Shaikshik Aur Vyavsayik Nirdeshan by ओमप्रकाश गुप्त - Omprakash Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शेक्षणिक निर्देशन मातापिता फी वालकं सम्बन्धो दो भ्रमुष्त समस्पाएँ हैं जिनके लिये बालकों को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है; (१) शिक्षा सम्बन्धी, (२) व्यवसाय सम्बन्धी ! दसे हो शैक्षणिक मार्येदर्शन किसो भी स्तर पर दिया जा सकता है लेकिन उच्च माम्यमिक कक्षाओं में पहुचने से पहले यह बहुत आवश्यक है। घालाओं মি মানহীন एा उस समय आरणभ्म होता है जबकि वर्तमान त्रियाओं का इुनाव उसके भविष्य के जीवन मे--विद्यालय छोड़ने के बाइ--प्रशावशाली हो जाता है। पह सप्रप है कक्षा ८ था ६ जबकि छात्रों को विभिन्‍न पाद्य-वर्णों मे से किसी एक जिश्के लिए वह अधिक योग्य है, फो चुदना आवश्यक है। यह भागगदर्शत “शैक्षिक मार्गदर्घन” बहलाता है। छात्र जो विषय छुनेगा वह आगे चलरर जीविकोपार्जन हेवु उपयुक्त होगा अथदा नहीं. यहे बात महत्त्वपूर्ण है। दूसरे शब्दों मे पैक्षणिक भार्यदर्धत पर ही आये घतकर व्यावसायिक मार्नदर्घन आधारित होगा बयोकि पैज्णिक मार्यदशेन के समय जिस प्रकार छात्र के बुद्धि, स्वर, विशिष्द मानसिक योग्यताएँ, रुचि, अभिरचि आदि को ध्याद में रखा जाता है, इस्हीं मनोवेशाशनिद तस्यों को वब्यादसायिक भार्यदर्शद के समग्र भी घ्यात में रण जाता है। उदाहरणायें रिसो एक दफ्तर में दाब्दिक योग्यता उच्च झतर थी है सो वह साहित्यिक दिफयो के लिए जसे भाषा, सामाजिक ज्ञान, इतिहास, भुगोल खलादि क ति बिक उपयुक्त होगा तथा भविष्य में ऐसे बाएं मे जिसमें साहित्य व मापा की अपघातता है जैसे प्रदारितां, संपाइन, अध्यापन आदि के लिये अधिक उपयुक्त होया। यदि शालक भौविष्यास्त्र,




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