आलोचना और आलोचना | Alochana Aur Alochana

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Book Image : आलोचना और आलोचना  - Alochana Aur Alochana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्यिक श्रष्ययतकी प्रकृति ११ तो एक कड़े का ढेर दूसरे कूड़े के ढेर से अलय और विशिष्ट होता द । दोनों উী নয সারাহ, रासायनिक तत्व भादि प्रद्वितीय होते है अत विशिष्टता की अहुन खीचना उचित नही, फिर इतियो के माध्यम शब्द विशिप्ट न होकर सामान्य होते हैं । वास्तव में कृति एक साथ विशिष्ठ और सामान्य होती है जैसे कि प्रत्येक ध्यक्ति अपने घाप में विशिष्ट भी होता है तथा अपने देश जाति सेक्स पेशे रादि मे सामान्य भी। वेंलेक एवं दारेत के ये शब्द इस प्रसंग में भत्यन्त सार्थक हैं, कि साहित्यिक समीक्ष/ एवं साहित्यिक इतिहास दोनों हो किसी कृति, किसी लेखक, किसी युग या राष्ट्रीय साहित्य के विशिष्ट वैयक्तिक चरित्र को झांकने का प्रयात करते हैं । परन्तु यह चरित्रांकक एक साहित्यिक ধিতাল্ৰ ক भ्राघार पर सा्व जनिक शब्दावली मे ही पूरा किया जा सकता है | परन्तु इस भ्रादर्श के झरा सहावुभूतिपूर्ं प्रहण एक रसास्वादस का महत्व कम नहीं हो जाता । ये तो साहित्यिक भ्रष्ययन वी प्रारम्भिक शर्ते है। ष्यात गह रहे कि इस प्रध्यपयन से केबल पठत बला रो ही सहायता नहीं मिलतो, उसके धपते संगठित ज्ञान का भ्रलग से भी महत्व है । पठनक्ला (11 ० 7८26106 } एक वैयक्तिक संस्कार है भौर इसी रूप मे वह समाज में साहि- किय संस्बापर को प्रश्नरित होने मे सहायता भी देता है, लेविन मे र्का साहित्य शास्त्र ( सिद्धान्त ) का स्थान नहीं ग्रहण कर सकते । मैं समझता हूं कि दविर इैचेज का यह भागह बहुत उचित नहीं है कि प्रालोचक को सदैव प्रपते ফিতা प्रौर ब्यवहार मे छुंरोष ही रहता चाहिपे। जहां तक सामान्य पटक का सम्बन्ध है यह धारणा ठीक है; परम्तु कभी-कभी भपने भध्ययन के समुचित सगठत में झपुनी विशिष्ट एवं सार्वमोम पद्धतियों के समस्वम दारा समीक्षक ऐसी शब्शवली कए प्रयोग भी कर सकता है जो विशेषज्ञ,.ही समर सके परस्तु यह विशेषज्ञ ग्रापेक्ष आानराशि न तो उपेक्षणीय है प्रोर हैं कम भद्ट्वपूरों ) साहित्यिक सिद्धास्तों (काम्यधास्त्र) का निर्माण इसीलिये प्राव- एयर रराद -




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