केन उपनिषद | Kenaupanishad

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Kenaupanishad by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ই केन्‌ उपनिषद्‌ । इसप्रकार उपनिषद्‌ विधाकी स्थिति हैं। “सत्यनिष्ठा, कमें और चेद इनको छोडकर उपनिषद्‌ रहता नहीं, इस दादश ठीक शड्‌ भकार जागनेसे वेद्‌ भौर उपनिषदोंका वाखदिक संदंध जाना जा सकता है और इनमे सुरय और गौण कौन है, इस विपयमें शंकादी नहीं होती | उपनिपदोंके सब ऊँग “ चारो वेदोंके सूक्त ? हैं, सत्प निष्टाफे सुध्ढ लाधारपर इसका भवस्थान ই जौर « तप, दम, कर्म” के अश्रयसे उपनिपद्‌ विद्या रहती हे । इसलिये न तो उपनिपद्‌ का कर्मोसे विरोध है और न वेदके साथ कोई झगडा हे | जो विरोध और ्षगदा खदा किया है, बह सांप्रदाबरिक जमिमानेंकि कारण सढ़ा हुभा है। देखिये-- (१०) उपनिपदूका आधार । त्ये तपो दमः कर्मेति पतिष्ठा । वेदाः सर्वामानि, सल्यमायतनम्‌ ॥ (भेन ड ২২) # (१) तप-खत्यके आम्रहसे श्राप्त करतेब्य करनेद्रे समय जो कष्ट होगे, उनो आनदसे स्न करना प है, (२) दम-अंदरके और याहिरके संपूर्ण इड्नियोंको लपने स्वापीन रखना और खयं ददरियोके जाधी- न न होना, दम कहलाता है। (३) संपूंणे श्रशेस्रतम धुषा इस करम अब्दसे বা হীন &॥ इन तीनों पर उपनिषद्‌ विधा खी रहती है। खारो चेदू इस उपनिषद्‌ जिदाके सब ग भोर सदयवे है । नौर सत्य उसका आयतन है।” पाठक इसका दिचार करेंगे, सो उत्तके ध्यानमें आा सकता है कि डपनिषदोका वेदोंसे क्या संबंध है । ऋग्वेद “सूक्तवेद” हे इसमें उत्तम दिचार हैं, यज॒र्वेद “कर्मवेद” हे इसमें प्रशल कर्मोफा कंपत है। सास* बेद “शांतिवेद” है इसमें शांति प्राप्त करनेका उपासना रूप साधन हे, जर भपर्ववेद “घहावेद” है इसमें प्रद्मविद्या हे। सुविचार, प्रशस्तकर्म, वषाप्रना मौर भष्टकान यद्‌ वेदद्ध एम देखनेसे बेद और वेदांतका संबर्ध ज्ञात हो सत्ता है। लय इसका झविक विचार करनेके पूपे इस श्पमिषदू के शांतिमंधोंका दिधार करना भावश्यक है; पर्योकि उससे एक सवीन ब्रातफी सिद्धि होनी हे ।




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