दृष्टान्त प्रदीपिनी | Drishtanta Pradipini
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
723
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पः ` -दणान्तप्रदीपिनीः)
आर उनमें वहतं सें दोपःसगादेतारै जसे मजी ` सेठंफलः तोड- `
ता तो बक्ष-सें!गिरा ओर पंछा - गेंया तो केंथाही-में' दोपलगाने :
सर्गा (हृ्ान्त) एकेसजी सेठकी ली- कहां करती कथामें जाओ -
» बेहे- मही जांताथां निदान एंकेदिन' लोग उसे गंढसे-पकड लेगये
वहां पशिडितजीने कर्द कथां पणहोगी; कदा यह सुनतेही दिः
शाकी शंकासगगयी उठके लए आया दूसरे दिन भेट एनां
यादहूवी कि सेठजी झायेभीये बुलाने चाहिये फिर दोमनुप्यगये :
दिशाकानाम लेके. छिपरहा- ख्री-ने.बतादिया मनुष्य, बांध ज॑ंक-
डकरलचले शंहमें विचांरा कुछ ঈত पूजाभीलिनी कम से कम
एकनारियरतों सेमा चांहिये फिर लोगोंसे कहा भेठ तो लेआएऊं
« उन्होंने छोड़ा तो घर को न जाकर वर्माचे में हीं तोड़ने गया
वेह वक्षछचोथा दीवार पे चढ़के तोडनेलग़ा फल हीथ में आया ४
. टुढ न,सका निदान ,खेंचते २.पेर -छूटगये सेठजी ज्टकते रहे
' तिंदान ऐक-पीज्वान हाथी, लिये, आत्ताथा.उसे देख पुकारा कि
.. तू हाथी:नीचे. लगाव पतच्चीस रुपये दंगा उसेनें-लगांया. तो वह
“ हाथी भी कुछ: नीचारहा:फिर-उसने,पीलवान से ,कहा-त भी
. 'खड़ाहोज़ा,तो;पेंतील ई,बह खड़ाईनआए देवयोगसे .वह हाथी हट,
गया. बोभ:भ्षारीहुओआ प्रील़वान.सेठज़ी; दोनों ,नीचे/गिरे; वह उठ
हाथी पै,चढ़चलागया सेठजी की :कल्ल २ हीलीहोगई - वे/लोग .
~ इसे देखते।? बाग़में झाये; पंछा आपको किसग्रे सारा तो,बोले |
« 'मोंको-या कपोदीःने मारशो.देःइति,चंतुरः प्दीपः:४॥द + |: *
पल्चमव्रद्ापः 1. + 4.
कथां ह्यपि विषवत् प्रतीयते दुर्दरिविमखां'
9 न्त्रार्मनः ।-गतःकथा धमपि जावयादित:ः सुष्वापा
- “ स्वादतवान्ःपतत् इवमृत्रम् ५५ ~
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रूप গনী विप संमानजान पड़ता है सैर
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