दृष्टान्त प्रदीपिनी | Drishtanta Pradipini

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Book Image : दृष्टान्त प्रदीपिनी  - Drishtanta Pradipini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पः ` -दणान्तप्रदीपिनीः) आर उनमें वहतं सें दोपःसगादेतारै जसे मजी ` सेठंफलः तोड- ` ता तो बक्ष-सें!गिरा ओर पंछा - गेंया तो केंथाही-में' दोपलगाने : सर्गा (हृ्ान्त) एकेसजी सेठकी ली- कहां करती कथामें जाओ - » बेहे- मही जांताथां निदान एंकेदिन' लोग उसे गंढसे-पकड लेगये वहां पशिडितजीने कर्द कथां पणहोगी; कदा यह सुनतेही दिः शाकी शंकासगगयी उठके लए आया दूसरे दिन भेट एनां यादहूवी कि सेठजी झायेभीये बुलाने चाहिये फिर दोमनुप्यगये : दिशाकानाम लेके. छिपरहा- ख्री-ने.बतादिया मनुष्य, बांध ज॑ंक- डकरलचले शंहमें विचांरा कुछ ঈত पूजाभीलिनी कम से कम एकनारियरतों सेमा चांहिये फिर लोगोंसे कहा भेठ तो लेआएऊं « उन्होंने छोड़ा तो घर को न जाकर वर्माचे में हीं तोड़ने गया वेह वक्षछचोथा दीवार पे चढ़के तोडनेलग़ा फल हीथ में आया ४ . टुढ न,सका निदान ,खेंचते २.पेर -छूटगये सेठजी ज्टकते रहे ' तिंदान ऐक-पीज्वान हाथी, लिये, आत्ताथा.उसे देख पुकारा कि .. तू हाथी:नीचे. लगाव पतच्चीस रुपये दंगा उसेनें-लगांया. तो वह “ हाथी भी कुछ: नीचारहा:फिर-उसने,पीलवान से ,कहा-त भी . 'खड़ाहोज़ा,तो;पेंतील ई,बह खड़ाईनआए देवयोगसे .वह हाथी हट, गया. बोभ:भ्षारीहुओआ प्रील़वान.सेठज़ी; दोनों ,नीचे/गिरे; वह उठ हाथी पै,चढ़चलागया सेठजी की :कल्ल २ हीलीहोगई - वे/लोग . ~ इसे देखते।? बाग़में झाये; पंछा आपको किसग्रे सारा तो,बोले | « 'मोंको-या कपोदीःने मारशो.देःइति,चंतुरः प्दीपः:४॥द + |: * पल्चमव्रद्‌ापः 1. + 4. कथां ह्यपि विषवत्‌ प्रतीयते दुर्दरिविमखां' 9 न्त्रार्मनः ।-गतःकथा धमपि जावयादित:ः सुष्वापा - “ स्वादतवान्‌ःपतत्‌ इवमृत्रम्‌ ५५ ~ : दरस विमुख अन्तःकरण जिसका, ऐसेदवुड्ि रूप গনী विप संमानजान पड़ता है सैर 8? *. &




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