श्यामस्वप्न | Shyamaswapan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
तुम सर्वश कहाय जौ न मम पीरहिं जोई।
तो झूठे सब नाम নিা जगतछ छोई।
एक पेम अवलभ्व तुमहिं सूरत जु ममर ।
गावत श्रुति व्यासादि मक्त भ्रन रोपि रोप धर।
जौ ऐसे फहददाय के प्रेम मोर चीन्दों नहीं।
ती रावरि सव कपट की बात गह खुलि तुरत हौ 7
मोर থ্রি না ইহ যাই দি জী কিন আনম ।
अंतरजामी होय गोय थद्द हू तुम माभनई।
एक बरस छा ध्याय ध्यान कर दयामा केरा ।
देव भतावत गए. दिवप জালা वप्त केरा
ता कहीँ अंतरध्यान कर कहूँ सोए तुम चक्धर |
के संगम भायो नहीं तुम नाथ मम दीन कर ॥
तुमरे पा ती भई खिमाई सो भर जानहु।
साथ गोपिफा बिरह दवागिन জহি जरि सानहु ।
समान समय झृपभासु सुत्ता के चरन पलोदे।
অল वियोग सद्दि बिरह् आँच परि सीस ससेटे
अगनित ऊियो उपाव तुम विरद्द ताप टारन से |
सी रय जानि न जदं ज्टो दया कपो नि रथि)
(४५ १५८-१५९ )
इ्यामसुंदर के पारदर्शी स्वच्छ हृदय में प्रेम की क्तिनी अपूर्थ
आभा जग्रमगा रही है। इसके उिपरीत द्यामा का श्रगह्म प्रेस चरसाती
नदी के समान बढ़ता घठता रहता है। डेढ़ वर्ष पश्चात् ही श्यामा
फमलाकात वो पहचान भी नहीं पाती | डाइन ने सच ही कहा थाः
जे ुच्छ सूसं--/जइ--चह तेरी च्यारों जो इतने यड़े की बेटी है
ঘুর मिली जाती है क्या ? कहाँ तू कहाँ बह ) कहाँ सूर्य और कहाँ
कोच, अर फिर वह डद वर्ष तक क्या तेरे लिए थैटी है ५ *- “~ ^
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