हिन्दी काव्य मे भक्तिकालीन साधना | Hindi Kavya Me Bhaktikalin Sadhana

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Hindi Kavya Me Bhaktikalin Sadhana by रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) 'ला इलाड इल्लिल्लाइ मुहम्मदरंयूलिल्लाइ? श्र्याव्‌ श्नल्लाइका कोई अल्लाह नहीं, बह एकमात्र परमेश्वर है तथा मुहम्मद उसका মুল या पैग्रम्बर है | यह सिद्धान्त पहले था, किन्तु जब उल्माश्रोंके द्वारा यह दोष-मस्त हो गया; तब इनसे भिन्न सूफियोंने अपना अलग मत स्थिर पिपा} भाए्तमे मुछलमानोंफे साथ ये दोनों घार्मिक घाराएँ भी श्रार्थी । ” ४--श्वफीमतवाद सातवीं शतान्दीमें इस्लाम घमकी जन्मदात्री पुए्य-मूमि अस्वद्ा बहुत बढ़ा अ्रशान्तिपूर्ण बाताबरण था | इस समय शान्ति चाइनेबाले जन- समुदायको मुशम्मद साइबफे जीवनसे तथा कुरानकी पवित्र श्रायतोंसे एक नयी दिशा भलक़ने लगी जो सूफी-घमंझा मूल यहीं पर इस्लामझो एक गहरा धर्म माननेमें है। सुफीनमते सम्बन्ध अगले परिच्छेद्म विशेष विचार द्या चायमा | भारत श्रनेपर सूफियोंने उल्माश्रोंति पपक रहकर श्रपने घममढ़! प्रचार किया । दिन्दी-काव्यड्ी मक्तिदालोन-(सें० १३७५०-१७०० ) #--रचनाएँ বহু धार्मिक विचार-धासाश्नोंसे विशेष प्रमावित हैं, श्रतः भारतीय उपा- सनाडो परम्परा पर संयेत कर देना श्रावशज््यक था। मंक्तिड्रालक्ी रचनाश्रोंमें मुख्य प्रबृत्तियां जो पायी जातो हैं, उनमें शानाभयी शाखा या सन्त-काब्य, प्रेममार्गो ( सूफ़ी ) शाखा या प्रेम-काव्य, राम-भक्ति शाला या शम-काब्य और कृष्ण-भक्ति शाखा या कृष्ण-काभ्य লিখ श्रौर ष्युण दो पाराश्रोंके बीच प्रवाहित होनेवाली हैं। इन अदृत्तियोमें पड़े हुए जो घारा विशेषफे विशिष्ठ कवि हैं, हम उनकी ढ्राब्य- पद्धति, स्वनाएँ, भाषा पर अधिकार, मत और हिदधान्ठ, खादिस्यमे उनका सपान एवं নন্দী विशेषताका सिद्दाइलोक्न करेंगे । $ धाचाय शुस्तजीने दिन्दी-साहिस्यके पूवमष्यमालझें मकिकाल माना है । दे+--हिन्दी-सादिस्यद्ा इतिहास! 1




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