समदर्शी आचार्य हरिभद्र | Samdarshi Aacharya Haribhadra

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आचार्य शांतिलाल जैन - Acharya Shantilal Jain

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पं. सुखलाल संघवी - Pt. Sukhlal Sanghvi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन की रूपरेखा [५ उनकी शोर विद्वान्‌ उत्तरोत्तर प्रधिकाधिक श्राकपित होते जा रहे है । ऐसी स्थिति में मुझे विचार आया कि हरिभद्र के दर्शन एवं योग विपयक ग्रन्थों मे ऐसी कौन कौनसी विशेपताएँ है जिनकी ओर अभ्यासियों का लक्ष्य विशेष जाना चाहिए ? इस विचार से मैने इस व्याख्यानमाला में श्राचार्य हरिभद्र के विपय में विचार करना पसन्द किया है और वह भी उनकी कतिपय विशिष्ट कृतियों को लेकर। वे कृतियाँ भी ऐसी होनी चाहिए जो समग्र भारतीय दर्शन एवं योग परम्परा के साथ सकलित हो। জিন कृतियों को लेकर मै इन व्यारयानों मे चर्चा करना चाहता हू उनकी अ्रसाधारणता बया है, यह तो श्रागे की चर्चा से स्पष्ट हो जायगा । मैने पाँचो व्यारयान नीचे के क्रम में देने का सोचा है-- (१) पहले में श्राचार्य हरिभद्र के जीवन की रूपरेसा। (२) दूसरे मे दर्शन एवं योग के सम्भावित उद्धवस्थान, उनका प्रसार, गुजरात के साथ उनका सम्बन्ध और उनके विकास में आचार्य हरिभद्र का स्थान । (३) तीसरे में दार्शनिक परम्परा में श्राचार्य हरिभद्र के नवीन प्रदान पर विचार। (४-५) चौथे और पाचवे म योग परम्परा मे आचार्य हरिभद्र के श्र्पएण का सबिस्तार निरूपण । आचार्य हरिभद्र के जीवन एवं कार्य का सूचक तथा उनका वर्णन करने वाला साहित्य लगभग उनके समय से ही लिखा जाता रहा है श्रौर उसम उत्तरोत्तर भ्रभि- वृद्धि भी होती रही है। प्राकृत, सस्कृत, ग्रुजराती, हिन्दी, जर्मन श्र अग्रेज़ी झ्रादि ४ भाषाओ्रों में अनेक विद्वान्‌ श्रौर लेखकों ने उनके जीवन एव कार्य की चर्चा विस्तार से की है। बेसे साहित्य की एक सूचि अन्त मे एक परिशिष्ट के रूप मे देनी योग्य होगी ।* ,.. यहाँ तो इस साहित्य के झाधार पर प्रस्तुत प्रसग के साथ खास आवश्यक प्रतीत होनेवाली बातो के विपय में ही चर्चा की जायगी । विशेष जिज्ञासु परिशिष्ट मे उल्लि- सित ग्रन्य आदि को देखकर भ्रधिक श्राकलन कर सकते है । जन्म-स्थान श्राचार्य हरिभद्र के जीवन के विषय मे जानकारी देने बाति ग्रन्थो ঈ सवते « अधिक प्राचीन समभा जानेवाला ग्रथ भद्रेश्वर की, अबतक अमुद्रित, कहावली नाम की प्राकृत कृति है। इसका रचना समय निश्चित नही है, परन्तु इतिहासज्ञ विचारक & देखा पुस्तव वे झत मे परिशिष्ट १




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