पतन की परिभाषा | Patan Ki Paribhasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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অন भौर मौति ५ पर, पाये बम्बर गौटिल्य छितते हैं-- न्मेति कोरिस्प: (१ )। धोस्णदष्डो हि भूतानामुजरीपः (११)) भृबुरण्ड परिमूषते (१२)। पप्दष्ड ? पूर्ष (१३)४” “परन्तु, ौैटिस्य एमा बही मानवे) तिप्युस्तापूर्षक एंड दैनेवाे राजा से शब ही प्राणी लिप्त हो जाते हैं. तबा जो दंड देने में कमी गरता है उसभा तिररषपार भी बरऐे हैं। इसछिए उचित श देनेदाणा राआ ही पूजनीय हेवा &। करमैटित्य पतित षये क्षमा मही करना बहते पर निष्टुप्ता भी नहौ बाहने। इंड हो पर मुझायम हो। आधुनिक अपणप-शाएश भौ भूम फिरकर महौ बहता है। ছাঁ भारतीय गीति पर्म वी भाजना से भी युक्त है इसी লি +फुबितातप्रगौतों हिं इष्डः प्रदा पर्मापरासपोश्यति (१४)” “जपारि बिपिपूर्दग घाएत्र से जासशर प्रयक्तर डिया हुआ दढ प्रजा नो সদ अप और काम से मुक्त करता है। परशुस्मृति मे भी मानव थौ रणा कै लिए दंद की मदृत्ता प्रतिपारित कौ है। पु ঈ अनुसार -- दण्ड दास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एदाभिरलति। शष्ड भुप्तेषु आापनि दण्डं पमं विगुर्पपा ॥ लमीष्य ए গুল सभ्यरपर्वा रञ्जयति प्रजा} महसीदय प्रगौनतरु दिनापयति पयतः ॥ “द णय प्रजामोरा सामन भरता । दही दकौ र्ता बताह) एए আহ লী £ दढ यापा गहना है। पदितों में शष् वो हो पर्म बतणाया है। विपार पूरेष प्प काबः दष मप प्रयाजा भो प्रगप्र षणा । শিপু हिना बिषाए विदे दह का বিঘা राशा बा सरंगाग बरता है। है “बरहते राहियेविशा--अ विम्भाब छाजी जाएाअ अशाएर- पौ कटा रारन भ, बारत्थसी--ने अजुतार शौरिश्य रा रजय हैं. बूब ४ दर्प था बाजी आज से १३ दइप बूर्ध बसरअति दा हैं धुई ३ হাখালছা शाजदाजय हर्णात रए शरूप ईला गे ६१ दुच पूर्ख चा। ३ अषरणुतवि-बच्याप ७ पतेर हट हा ह




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