पतन की परिभाषा | Patan Ki Paribhasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
734
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)অন भौर मौति ५
पर, पाये बम्बर गौटिल्य छितते हैं--
न्मेति कोरिस्प: (१ )। धोस्णदष्डो हि भूतानामुजरीपः (११))
भृबुरण्ड परिमूषते (१२)। पप्दष्ड ? पूर्ष (१३)४”
“परन्तु, ौैटिस्य एमा बही मानवे) तिप्युस्तापूर्षक एंड दैनेवाे राजा से
शब ही प्राणी लिप्त हो जाते हैं. तबा जो दंड देने में कमी गरता है उसभा तिररषपार
भी बरऐे हैं। इसछिए उचित श देनेदाणा राआ ही पूजनीय हेवा &।
करमैटित्य पतित षये क्षमा मही करना बहते पर निष्टुप्ता भी नहौ बाहने।
इंड हो पर मुझायम हो। आधुनिक अपणप-शाएश भौ भूम फिरकर महौ बहता है।
ছাঁ भारतीय गीति पर्म वी भाजना से भी युक्त है इसी লি
+फुबितातप्रगौतों हिं इष्डः प्रदा पर्मापरासपोश्यति (१४)”
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अप और काम से मुक्त करता है।
परशुस्मृति मे भी मानव थौ रणा कै लिए दंद की मदृत्ता प्रतिपारित कौ है। पु
ঈ अनुसार --
दण्ड दास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एदाभिरलति।
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लमीष्य ए গুল सभ्यरपर्वा रञ्जयति प्रजा}
महसीदय प्रगौनतरु दिनापयति पयतः ॥
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