सुत्त निपात | Suttanipat

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Suttanipat by भिक्षु धर्मरस - Bhikshu Dharmras

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १९१९ ) भी दी गयी €। प्रो० अनेसाफि ने अपने तस्सम्यन्धी अध्ययनों मे यद्द दिशाया ह कि चीनी त्रिपिट्फ में सुत्तनिपात का उल्टेग कहीं यहीं जाया ९। अट्टकवग्य वा चीनी अनुदाद तीघरी शताब्दी दा ह और बह ताईश निपिटक स० १९८ के अन्तर्गत ९ । यहाँ पर इस दर्ग का नामकरण भी विचारणीय है। सारे না মী দীন चार जष्ठफ ट्‌ । शेप सूत्र মিন মিল ভন্টা में है। इसलिए पूरे वर्ग का नाम अष्टक क्यो रसा गया है ! हो सफृता है कि औरों की आला अठका को सख्या अधिकरने वे यद नाम रपरा गवा ष्टो | इस सिलसिडे में यह उल्लेयनीय दे कि चीनी अनुवादों में इस वर्ग था नाम अर्थवर्गीय आया है । एक महासाधिक विनय में अप्रकबर्गीय मिलता है। लेकिन वहाँ भी भगवान्‌ द्वारा श्रोण से पदों के अर्थ पूछने का उब्लेप आया है। इसलिए अप्टफब्गीय की अपेक्षा अर्थ बगाय अधिफ सार्थक माठ्म रोता टै) पारायणचगग अदरकवग्ण की तरद्‌ पारायणयगग भी अति प्राचीन है। आरम्भ में वत्यु- गाथा नाम से इस वर्ग का निदान है। उसऊे बाद सोल पुच्छाएँ है । अन्त में पारायण सुत्त मे, जो कि इस बर्ग का पर्यवसान है, पारायण का अर्थ इस प्रकार दिया गया है--“पारदमनीया इसमे धम्मा त्ति तस्मा इमस्स घम्मपरियायस्स पारायण तेव अधिवचन, अर्थात्‌ ये धर्मं पार ले जानेवाले हैँ | इसलिए इस प्रसत्न कानाम पारायण पडा है | छठी तथा सातवीं गाथाओं का आशय भी यही है। पारायणवग्ग का उल्लेख सयुत्तनिकाय तथा अद्ुत्तरनिक्राय में कई बार आया है। उदयमाणवपुच्छा की पॉचवी गाया देवतासयुत्तों में आयी है। दूसरे स्थल पर भी यदी साया आयी दै । यहों गाथा के प्रथम पादमे नन्दी- सयोजनो लोको की जगद पर नन्दी सम्बन्धनो लोकों का पाठ है। लेकिन यहाँ पर्‌ पारायण वर्ग का उल्लेख नहीं आया है| इसी निकाय में जहाँ पर अजित- माणव्रपुच्ठा की सातवीं गाया आयी है व्दों पुष्ठा का उल्लेख भी हुआ दे । फिर एक ओर स्थल पर यही गाया एक हूम्बे उपदेश का शीर्पक वन गयी है | १ जर्नह भाफ पालि टेकस्ट सोत्तायटी,१९०६-१९०७ । २ डा[० विक्रम सिदद ने चौनो तथा पालि रूपान्तरों की समानताएँ दिखाई ६। देखो--ए क्रिटिकलू भनलिसिस्‌ अफ़ सुसनिपात । ४ सथुृत्तनिकाय, जिल्‍्द--१, प1० टे० सो०, पृ० ३९ । রি 22 2) 93 2 2 ४०॥ ५ ॐ 99 य्‌




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