अंगउत्तर निकाय दूसरा भाग | Anguttar Nikay Bhag-2

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Anguttar Nikay Bhag-2 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ सम्बध दारा इस वातकी घोषणा किये जानेपर कि अमुक आख्रव क्षीण हौ गये है, कोई श्रमण या ब्राह्मण या देव या मार या ब्रह्मा अथवा विश्वमें कोई और यथार्य-रूपसे यह दोपारोपण कर सके कि इन आख़वोका क्षय नही किया गया है। भिक्षुओ, इस प्रकारका कोई लक्षण दिखाई न देनेके कारण ही, मैं कल्याण-युक्‍त, निर्भय, वैशारद्य-युक्त होकर विचरता हूँ। में इसका कोई लक्षण नही देखता कि सम्यक्‌- सम्बुदध हारा इस वातकी घोपणा किये जानेपर कि अमुक धर्म ( निर्वारण-मार्गके ) वाधक घमं रै, कोड्‌ श्रमण या ब्राह्मण यादेव या मार या ब्रह्मा अथवा विश्वमे कोई और यथार्थ रूपसे यह दोपारोपण कर सके कि उन उन घर्मोका सेवन अर्थात्‌ उन वातोंके अतुसार आचरण (निर्वाण-मार्ग) में वाघक नहीं होता। भिक्षुओ, इस प्रकारका कोई लक्षण दिखाई न देनेके कारण ही, में कल्याण-युकत, निर्भय, वैशारय- युक्त होकर विचरता हूं। मैं इसका कोई लक्षण नही देखता कि सम्यक्‌ सम्बुद्ध द्वारा इस वातकी घोषणा किये जानेपर कि अमुक अमुक धर्मोका पालन दुःख-क्षयका कारण होता है, कोई श्रमण या ब्राह्मण या देव या मार या ब्रह्मा अथवा विदवममें कोई और यथार्थ रूपसे यह दोपारोपणकर सके कि अमुक अमुक धर्मोका पालन दु ख-क्षयका कारण नही होता। भिक्षुओ, इस प्रकारका कोई लक्षण दिखाई न देनेके कारण ही मैं कल्याणयुकत, निर्भय, वैश्ञारय-युक्‍्त होकर विचरता हूँ। भिक्षुओ, ये चार तथागतके वैश्ारद है, जिन वैश्ञारद्योसे युक्त होकर तथागत वृषभ-स्थानकी प्राप्त होते हैं, परिषदोमे सिहनाद करते हूँ और प्रह्यचक्र प्रवतित करते ह । ये केचि ये वादपया पुथुस्सिता यश्चिस्सिता समणत्राह्यणाच तथागत पत्वान ते भवन्ति विसारद वादपयातिवत्त यो धम्मचक्क अभिभूय्य केवल पवत्तयि सन्वभूतानुकम्पि त॒ तादिस देवमनुस्ससेद सत्ता नमस्सन्ति भवस्स पारगु | जितने भी बहुतसे ऐसे वाद हैं, जिनमें श्रमण-ब्राह्मण उलझे हुए हैं, वे वादोंसे मुक्त, विशारद, तथागतके पास पहुँचनेपर ' शान्त” हो जाते है) सभी प्राणियोपर अनुकम्पाकर जिन्होने धर्म चक्र प्रवतित किया, देव-मनुष्य-श्रेष्ठ भव-पारगत वुद्धको प्राणी नमस्कार करते है । ]




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