अनुभूति के आलोक मैं | Anubhati ke Alok Mei
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भात्मा ही परमात्मा है :
परमात्मा का दर्शन करने से पूर्व आत्मा का दर्शन करना अत्यन्त
जरूरी है.
जो आत्मा का दर्शन नही कर सकता, वह परमात्मा का दर्शन कैसे
करेगा ?
वस्तुत. आत्मा और परमात्मा' मे एक आवरण का ही अच्तर हं
मोह का आवरण जब तक है, आत्मा सुप्त-परमात्मा है. मोह का
आवरण हटा कि आत्मा मे ही परमात्मा जागृत हो जाता है.
धमं का वीज.
धर्मरूप महावृक्ष का वीज है--सरलता ! सरलता के वीज को
जब प्रज्ञा का जल सीचा जाता है, तो जीवन वन मे धमं का महावृक्ष
लहलहाने लगता है.
पवित्रता का मूल :
पवित्रता का मूल सदाचार है. ह
सदाचार के अभाव में पवित्रता की आशा करना वैसा ही है, जैसा
जल के अभाव मे शीतलता की आशा !
शुद्धि और सिद्धि :
शुद्धि के विना सिद्धि नही मिल सकती जहाँ शुद्धि है वही सिद्धि है
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