गाँधी की कहानी | Gandhi Ki Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गांधी की कहानी २, ध ~ प्राथना से पहले मृत्यु शाम को ४-३० वजे आभा भोजन लेकर आईं। यही उनका अन्तिम भोजन होने वाला था | इस भोजन में वकरी का दघ, उबली हुईं और कच्ची भाजियाँ, नारंगियाँ, ग्वारपाठे का रस मिला हज अदरक, नीबू ओर घी का काढ़ा---ये चीजें थीं। नई दिल्‍ली में बिड़ला भवन के पिछवाड़े वाले भाग में जमीन पर वैठे हुए गांधीजी खाते जाते थे और स्वतंत्र भारत की नई सरकार के उप प्रधान-मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से वातें करते जाते थे। सरदार पटेल की पुत्री और उनकी मंत्री मणिवहन भी वहाँ मौजूद थीं । बातचीत महत्त्वपूर्ण थी । पटेल और प्रधान-मंत्री नेहरू के वीच मतभेद की अफवाहें थीं। अन्य समस्याओं की तरह यह्‌ समस्या भी महात्माजी के पल्‍ले डाल दी गई थी। गांधीजी, सरदार पटेल और मणिवहन के पास अकेली बेठी आभा बीच में बोलने में सकुचा रही थी। परन्तु समय-पालन के वारे में गांधीजी का आग्रह वह जानती थी । इसलिए उसने आखिर महात्माजी की निकल की घड़ी उठा রঃ ली और उन्हें दिखाई। गांधीजी बोले, “मुझे अब जाना होगा ।” यह कहते हुए वह उठे पास के गुसलरूखाने में गये और फिर भवन के वाई ओर बड़े पार्क में प्रा्थना-स्थान की ओर चल पड़े | महात्माजी के चचेरे भाई के पोते कन्‌ गांधी की पत्नी आभा और दूसरे चचेरे भाई की पोती मन॒ उनके साय चली । उन्होने इनके कन्यों पर्‌ अपनं वाकां




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