वीर भूमि चितौड | Veer Bhumi Chitoud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ मेवाड़ और यहां का राजवंश इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध रहा है। “मेवाड़ शब्द संभवतः मेर अथवा मेव लोगों के यहां दीघेकाल से निवास करने के कारण पड़ा है। संस्कृत में इसके लिये मेदपाट शब्द प्रयुक्त हुआ है । दोनों शब्द १०वीं शताब्दी से बराबर मिलते हैं 1 । भ्रतएव इस शब्द का प्रचलन काफी प्राचीन रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं। चित्तोड़ और इसके झ्ासपास का क्षेत्र बहुत प्राचीन है। माध्यमिक नगरी जो महाभारत काल से लेकर पहली शताब्दी तक बड़ी प्रसिद्ध थी यहां से केवल ও मील दूर है। इस क्षेत्र का इतिहास बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है । जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार ই: प्रागेतिहासिक काल चित्तीड श्रौर इसके श्रासपास के क्षेत्र की प्राचीनता सिद्ध करने के लिये बहुत्त ही महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हो गई है । हाल ही में इस क्षेत्र में पुरातत्व विभाग ने उत्खवनन कराया था। यहां भ्रस्तरयुगीन आयुध प्राप्त हुए हैं । डा० सत्यप्रकाश जी और श्री विजयकुमार के लेखों में इस पर पर्याप्त प्रकाश १--वि०सं० १०४४ में लिखी “धम्म परिक्‍्खा” में यह शब्द इस प्रकार प्रयुक्त हो रहा है :- इय मेवाडइदेसिजणसकु ल सिरिउजपुरनिग्गयधक्कडकुलि पाचकरिद कू मदारण हरि, जाउ कुलाहि कुसलाणमें हरि ॥११।४॥ वचिस० १०५३ के हद्वंडी के लेख में मेदपाट शब्द प्रयुक्त हुआ है :- भंक्त्वा घाटमघटाभिः परकेटमिवमिदं मेटपाटे मटानां जन्ये राजन्य जन्ये जनयति जनताजं (१) रणम जराने । श्री - माणे प्रणष्टे हरिण इवमिया गुजरेशमिनष्टे तसंन्यानां स॒ (ख) रण्यो हरिरिव शरणे यः सुराणां वभूव ।१०॥। ए० इ० माग १०॥




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