मीराबाई की जीवनी | Mirabai Ki Jeevni
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ १३ )
राणने समभावो जावो, में तो बात न मानी
सीरके प्रयु गिरधर नागर संतां हाथ विकानी ।
उदावाई--भामी वोरो यचन विचारी ।
साधो की संगत दुख भारी, मानो बात हमारी]
छापा तिलक गलहार उतारो, पहिरो हार हजारी |
रतन जड़ित पहिरो आभूषण, भोगो भोग अपारी।
मीरांजी थे चलो महख्मे, थनि सोगन म्हारी । `
मीराबाई-- माव भगत भूषण सजे, सीख संतां सिगार ।
ओढ़ी चूनर प्रेमकी; गिरधरजी भरतार
ऊदाबाई मन समझ, जावो अपने धाम |
राजपाट भोगो तुम्दी, हम न तासं काम 1१
विषका प्याला
राणाने कुपित होकर विष भरा प्याछा भेजा, पर मीरां उसे
चरणामृत मानकर पी गई : |
विषकों प्याछा राणाजी मेल्यो, यो मेडतणीने पाय ।
कर चरणामृत पी गई रे, गुण गोविंद रागाय ।२
राणाने पिटारेमें सांप भरकर भेजा, पर मीरनि जब उसे गले
में डाछा, तो हार बन गया :
५ भ ৬.
सांप पिटारो राणाजी भेज्यां, थो मेड़तणी गल डार।
हँस-हँस मीरा कंठ छगायो, यो तो म्हांरे नोसर हार ।३
एक अन्य पदसें संकेत है. कि मीरांतते जब सांपका पिटारा
छुआ; तो उसमें शालिग्राम निकले :
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