अल्लाह | Aalah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
340
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परमाल का व्याह ६
कर वासुदेव से न रहागया। उसने फ़ौरन तोपखाने को आग उगलने की
आशा दी । यह देखकर चन्देली की तोपें भी आग वरसाने लगीं। बात को
चात मेँ सैकडां सिपाही इस जगत् से कूच कर गये । कहते हैं कि जिस हाथी
के गोला लगता था वह वहीं चिंधाडकर प्राण छोड़ देवा था} ऊट गेले खाकर
वारो खाने चित्त लेट रहते ये श्रौर घेडे भी चारो सुमो को फैलाकर जी तोड़ देते
थे। ऐसे समय आदमियों की कौन कहे | पृथ्वी उनकी लाशों से पी हुई थी ।
गेलो क बन्द कर पैदल लेग अपने-अपने हथियार सभालकर आगे
बढ़े । उन्दने सवसे पहले वन्दुक्रं चलाना शुरू किया । कवि बन्दूक्कों की गोली
के बारे में कहता है--
सन सन सन सन गाली छूट, माने मंघा बूंद भरि छाय ।
जैसे नागिन घुसे ववी मे, तैसे पैठ जङ्ग में जाय ॥
इस प्रकार कड़ाबीनों से गोलियाँ निकलकर चारों ओर ग़ज़ब ढाने लगीं |
भ घोड़े, ऊंट और आदमी सभी के उनका शिकार होना पड़ा |
जब्र बीर लेाग वन्दूक्तों से मनमानी आग उगल चुके तब उन्होंने तीर-
कमेन और तलवारों के संभाला । कवि लिखता है--
चले ज्ुनर्वी औ ग्रुज़राती उप्ना चले विकायत क्यार |
तेगा चले दधान को, कटि कटि सुंड गिरे' भदसाय।
रुगे जाके तीर की गाँसी, सो गिरि परे भरहरा खाय |
दान के डरडा के छागतत खन, नरतन दुद् खडा होड जाय।
इस तर्द दोना दल एकत दूसरे का नाश करने लगे । कहते है कि मेवे में
इससे पहले ऐसा युद्ध कभी नहीं हुआ था | इसके लिट क्वि कदत ६--
पैग पैग पर पैदर गिरगै, दुद इद पैग गिरे श्रस्रवारः)
चिसे विसे पर हाथी गिरगे, घेड़न ऊंट कौन सुम्मार।
हज़ारों सिपाहियों ओर जानवरें के घायल हाने से उनके खून से वालाब-
सा बन गया। इस तालाब में मनुष्यों की पगड़ियाँ कमल के फूलों की
नाई उतरा रही थीं और दुशाले सिवार की तरद दविद्धे हुए জান पड़ते थे,
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