जैन धर्मामृत | Jaindharmamrit

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जैन धर्मामृत  - Jaindharmamrit

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प. हीरालाल शास्त्री - Pt. Heeralal Shastri

Add Infomation About. Pt. Heeralal Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
সন্ত ओर अन्थकार-परिचय ` * १७ उपयुक्त दोनों ग्रन्थोंका प्रकाशन उनके हिन्दी अनुवादके साथ अनेक संस्थाओंसे हो . चुका है। समयसार कलशका प्रकाशन पं० राजमल्लकी प्राचीन हिन्दी. वचनिकाके साथ बहुत पहले ब्र० शीतल प्रसादजीके द्वारा सम्पादित होकर जैन विजय प्रिंटिंग प्रेस सूरतसे हुआ है और जो उस समय जैनमित्रके आहकोंको उपहार स्वरूप भी भेंट किया गया था। हमने जैन घर्मामृतमे उक्त दोनों मरन्थोका उपयोग सनातन अन्थमालाके सप्तम गुच्छुकसे किया है | ८, अमितगति और सं० पंचसंग्रह, अमितगति-श्रावकाचार प्राकृत पंचसंग्रहकी आधार बनाकर उसे पल्लवित करते हुए. आ० अमितगतिने अपने संस्कृत पंचसंग्रहकी रचना की है। मूलग्रन्थके समान इस ग्रन्थमें भी उसी नामवाले पाँच अध्याय हैं, जिनमेंसे प्रथम अध्यायमें , २० प्ररूपणाओंके द्वारा जीवोॉंका और शेष अध्यायोंमें कर्मोकी विविध अवस्थाओंका चौदह मार्गशाओंके छारा वर्शन किया गया है। उन अध्यायोंके नाम और उनकी श्छोक-संख्या इस प्रकार है-- १. जीवसमास श्लोक संख्या ३५३ २. प्रकृतिस्तव 5 , ल ই. वन्धस्तव . क १०६ ४. शतक > ३७५४ ५. सप्ततिका ५ छट उक्त श्लोक-संख्याके अतिरिक्त पाँचों ही श्रध्यायोमे लगभग ५०० श्लोक-प्रमाण गद्य भाग भी है और बीच-बीचमें मूलके अथको स्पष्ट करने वाली अनेकों अंक-संदृश्टियाँ भी हैं। इस ग्रन्थसे जैनधर्माम्तके दूसरे, छुठें, सातवें, ओर दसवें अध्यायमें गुणस्थानोंके स्वरूपवाले २३ श्छोक संण्हीत किये गये हैं । आ० अमितगतिने एक श्रावकाचार भी रचा है, जो उनके नामपर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now