पांच कवि | Panch Kavi

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Panch Kavi by जिनेन्द्र मुनि - Jinendra Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) (३) क्रान्ति के स्वर [श्री सौभाग्य मुनि जी “कुमुद” | पृ० অত १ शान्ति प्राथेना ६५ २ पुरुपार्थ जगाएगा ९६ ३ कौन सुनेगा ? ६७ ४ डगमग करती नाव ६८ ५ जिनवाणी कौ गगा ९€ ६ चन्दना री पकार १०० ७ धमं विना जीवन सूना १०१ ८ गूंज रही है वासुरिया १०२ ६ जाग-जाग तेरी उमर जाए १०३ १० ओ धन वासौ । १०४ ११ मद मरियो जोवनियो १०५ १२ पहलाँ री कमाई १०६ १३ रुलाया ना करो १०७ १४ कर्जा चुकाना पडेगा ~ १०८ १५ श्र पासकुमार का विनय १०६ 9 सं० १६ सफल वनाले ११० १७ मक्त की पुकार १११ १८ चेतन सो रहा है ११२ १६ न ऐंठो धनवान ११३ २० जग उठ रे ? ११४ २१ लुट गये आके ११५ २२ मारत रो भाग जगाओ ११६ २३ समाज का कलक दहैज ११८ २४ नेताओ से ११९ २५ राज मे अन्याय चाले १२० २६ मनि स्थूलिमद्र ओर कोशा १२२ २७ ओ वले वाले । १२४ २८ भाव विना कल्याण नही १२५ २६ फंस गयो मवरा । १२६ ३० प्रमो 1 तुमे पार लगाना रे १२७ (४) गीतों की मधुर बहार [श्री मगन मुनि जी ^रसिक' | १ मगलकारी हो ! १३१. ६ प्रेम के पवन में * १३६ २ त्रिशला जी रा लाल १३२ ७ अभमोलक आठम १३७ ३ श्रीकृष्ण जन्म १३३ ८ तपस्या कर लीजो १३८ ४ वीर जयन्ती ' १३४ € गुरुदेव की महिमा १३९ भ दुलेम रतन १३५ १० उडने म्हूँ लंका আক १४०




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