अतिमुक्त | Atimukta

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Atimukta by गणेश ललवानी - Ganesh Lalavani

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गणेश ललवानी - Ganesh Lalavani

Add Infomation AboutGanesh Lalavani

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अब नमूची थे हस्तिनापुर के राजमत्री । भिक्षु चित्र और सम्भूत हाथ मे भिक्षा पात्र लिए. आ खडे हुए उनके प्रासाद के सन्मुख । यह देव इच्छा ही तो थी । नमची लज्जा से लाल हो उठा | वह सोचने लगा कही ये उसके अधःपतन की वात न खोल देँ । अतः नमृची की आना से सके अनुचर उन्हें चण्डालपुत्न कहकर लज्जित करते हए परिखा के उस पार छोड आए । भिक्ष॒ चित्र का हृदय तो इस अपमान से विचलित नहीं हुआ। क्योंकि उसका मन था शुभ्र और निर्मल | अतः उसने तो सहज भाव से ही क्षमा कर दिया | किन्तु सम्भूत के लिए ऐसा करना सम्भव न हो सका । उसका मन तौ उनके प्रति आक्रोश मे भरा रहा जिन्होंने उन्हें घृणापूरवंक दुत्कारा था । अतः नमूचीकृत अपमान उसे कटे की तरह चभ रहा था। सम्भूत के मन मँ तपस्या का गवं था। वह अन्याय नहीं ইলা जिन्दोने अन्याय किया है उन्हें और समग्र हस्तिनापुर को वह तप.लन्ध शक्ति से जलाकर राख कर देगा । किन्त एक क्षण के लिए भो वह नही सोच पाया कि उन्हें जला- कर राख कर देने पर उसकी उपवास क्लिष्ट तपस्या की समस्त জাখ- कता ही नष्ठ हो जायेगी । सनतुकुमार थे उस समय हस्तिनापुर के चक्रवर्तीं सम्राट । उन्होने जव यह वात सुनी तौ स्थिर न रह सके। राजदण्ड फँककर साधु के निकट जा पहुचे । ओर सभी की ओर से क्षमा प्रार्थी हुए ६ अतियुक्तं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now