विचार दर्शन | Vichar-darshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : विचार दर्शन  - Vichar-darshan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about केदारनाथ - Kedarnath

Add Infomation AboutKedarnath

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जीवनकी सार्थकता ९. प्राप्त होता है। हम सवं सद्गुणी ओर शील-सपन्न बने, यही भुसकी आकाक्षा रहती है 1 > एकमेका साह्य करू 1 अवघे धरू सुपथ ।। हम स्वको परस्पर अंक-दूसरेकी सहायता करते हुम अच्छे रास्तेसे बुदात्त घ्येयकी ओर वढना है! यदी विवेकी पुरूपका जीवन-मत्र होता है) भिस जीवन-मच्रके अनुसार वह्‌ अपना जीवन-पथ और ध्येय निश्चित करता हैं। जिस मार्ससे चलते चलते वह जीवन-सिद्धि प्राप्त करता है ओौर अन्तमे धन्य बनता है। ठ जिसी मार्गका अवरूम्बन लेकर यदि जुस पर चलते रहे, तो क्या हम सभी धन्य नही होगें? २ ॥ जीवनकी साथंकता मानव-जीवन आजकल अितना अशुद्ध हो गया है कि भावी प्रजाकी क्या स्थिति होगी, जिसकी ठीक ठीक कल्पना भी हम नहीं कर सकते। हे प्रत्येक व्यक्ति यदि अपने व्यवहार तथा आचरणका सामुदायिकताका विचार करे, तो मालूम होगा कि असके अशुद्ध अभाव व्यवहार तथा आचरणसे समाजमे अशुद्धि ही वढ ` रही है! असत्य, अप्रामाणिकता, धोखेवाजी आदि द्वारा प्राप्त की; हुओ वस्तुओकी भौतिक दुष्टिसे चाहे जितनी कीमत आकी जाती हो, फिर भी हमारे हाथसे आन चीजोके निकल जानेमें समय नही लगेगा । कठेकिन अुनकी प्राप्तिके कलिञ हमने লিল दुर्गगोका आच- रण किया ओर जिन्हे वढाया दहै, अन्हे अपने भीत्तरसे ओर समाजमे से हम मिटा नही सकेगे। सिस प्रकार प्राप्त की हुभी वस्तुसे हमारी कौनसी शक्ति बढती है ? अपनी मानी हुजी कार्यसिदधिके चि यदि हम दुर्मुणोकी स्पधमि लगेगे, तो सूसका क्या परिणाम होगा, जिसका विचार हमे करना चाहिये । तत्त्वज्ञानमे जितनी आगे बढी हुओ प्रजाकी जैसी स्थिति क्यो हुओी,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now