नरमए हरम | Nar Maye Haram

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Nar Maye Haram by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कु | : 2 3 শি ^ ७, मदिरा-पानसे परिपूर्ण, महिलाओ्रोंकी शाइरो--अख्तर' इधर तही दहे पवू, उस तरफ़ तही सागर ! चह वादा-रेज़िए-महफ़िल्की सुबहो-शाम कहाँ ! मिटे हुए-से हैं कुछ नक्शे-पोौ ज़रूर मगर रहे - तलबमें' वह याराने - तेज़गाम कहाँ? नवाए - वक्ती बहुत गुलफ़ियाँ सही लेकिन वह जाँ नवाज़ सुहष्बत अदा, पयाम कहाँ ! शर्मीमे-शामे-मुहच्बतकी .. क्या करूँ “अख्तर! ! नसीमे-सुबहे-तमन्नाका वह ख़राम कहाँ ? ग़ज़ल जिसमें सरूरे - दर्द - ग़मे - आशिक़ी ` नही वोह ज़िन्दगी, तो मौत है, बोह जिन्दगी नहीं जिसमें बराए - रास्त हो उनसे सुआमछा নাহ ! ऐन होश है, वोह बेखुदी नहीं इक शवने-अन्दरीवकरे ` दमसे थी सव वहार फूलोंमं अब वोह रंग नहीं, दिल्कशी नहीं १७ १. रदिराका षडा खाली है, २. मदिराका प्याखा रिक्त दहै, ४. चरणचिह्न, ५. प्रेम-मार्गमें, ६. शीघ्रगामी, समयका गीत, ८. नुहावना, ९. जीवन-संचारक प्रेम-सन्देल, १०. सन्ध्या वगलछीन सुगन्धको, ४१. आदा शूप प्रातःकाटीन चाट, १२. प्रेम व्यथा्थ- वा नया, १३. सीधा सम्बन्ध, १४. वैहोयी, १५. वुटवुलके विदानके, १६, आकर्षण ।




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