शान्ति या विनाश | Shanti Ya Vinash
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
82
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न १६ )
। ९ .
प्रारम्भ मे मुष्य प्राकृतिक देन पर दी. निमेर था; धीरे
धीरे वह श्कृति को अपने वश में करने लगा ओर अपने,
अनुकूल उत्पत्ति भी करने लगा,--वंह किसान या खेतिहर ` .
चना.। इसे मानव-समाज का दूसरां युग कहा जा सकता है। .
परन्तु मयुष्य की उत्पादक प्रेरणा और प्रकृति पर स्वासित्व
की अभिलाषा अपनी निरन्तर गति से जारी थौ; वह् एक
क़दम और आगे बढ़ा ; उत्पादन में उसने मानव कृतियाँ -की
भरपूर सहायता ली ; वह् साधारण अबज़ारों से बढ़कर कुल-
पूर्वो द्वारा काम करने लगा ; मशीन ओर कारलानों का पसुत्व ` `
स्थापित हुआ और इसे अब हँस व्यावसायिक युग कहते हं ।
यद्य आकर संसार स्वभावतः दयो दल मे विभाजित ह्यो गया ~ . ` `
( अर ) वह, जो सशीन और कारखानों के मालिक द तथा
जिनका जीवन-यापन कल-कारखानों पर अवलम्बित है।-कार- .
खानों में दूर-दूर तथा देश-विदेश- से कन्चा साज्न लेकर उपज
होती है और उसमे कायं करने बलि भी विभिन्न स्थान, प्रान्त
ओर देश के दोते ह । केन्द्रीकरण ` कारखानों का स्वाभाविक
गुण है उपज और जीवन-व्यापार थोड़े से स्थल में केन्द्रित
हो जाता है। केन्द्रित उपज की खपत भी स्वभावतः भिन्न-भिन्न
स्थानों में केन्द्रित हो जाती है जो हमें बढ़े-बड़े वाज़ार, करे और
शहर के रूप में दृष्टि-गोचर होते हैं। कारखानों की विराट् उपज -
\ को सफल वनानि के लिए उनके वाहक ओर साधक भी स्वभावतः.
. चिराद् होते ह । रेल तार, जदाज्, विजलीघर, फिर इनके
अपने, वङ़-वडे कारखाने चर् उन कारखाने के मजदूर, मृदू ` `
के घरं, अस्पताल, खेल, तमाशे, स्कूल इत्यादि । इनकी रक्षा और
` नियन्त्रण के. लिए पुलिस चनौर सेना, अदालत और हाईकोट
खं शरीर जजी, स्याव श्रौर जङ्गम कौ जमघट ने एक नह
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