शान्ति या विनाश | Shanti Ya Vinash

Shanti Ya Vinash by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न १६ ) । ९ . प्रारम्भ मे मुष्य प्राकृतिक देन पर दी. निमेर था; धीरे धीरे वह श्कृति को अपने वश में करने लगा ओर अपने, अनुकूल उत्पत्ति भी करने लगा,--वंह किसान या खेतिहर ` . चना.। इसे मानव-समाज का दूसरां युग कहा जा सकता है। . परन्तु मयुष्य की उत्पादक प्रेरणा और प्रकृति पर स्वासित्व की अभिलाषा अपनी निरन्तर गति से जारी थौ; वह्‌ एक क़दम और आगे बढ़ा ; उत्पादन में उसने मानव कृतियाँ -की भरपूर सहायता ली ; वह्‌ साधारण अबज़ारों से बढ़कर कुल- पूर्वो द्वारा काम करने लगा ; मशीन ओर कारलानों का पसुत्व ` ` स्थापित हुआ और इसे अब हँस व्यावसायिक युग कहते हं । यद्य आकर संसार स्वभावतः दयो दल मे विभाजित ह्यो गया ~ . ` ` ( अर ) वह, जो सशीन और कारखानों के मालिक द तथा जिनका जीवन-यापन कल-कारखानों पर अवलम्बित है।-कार- . खानों में दूर-दूर तथा देश-विदेश- से कन्चा साज्न लेकर उपज होती है और उसमे कायं करने बलि भी विभिन्न स्थान, प्रान्त ओर देश के दोते ह । केन्द्रीकरण ` कारखानों का स्वाभाविक गुण है उपज और जीवन-व्यापार थोड़े से स्थल में केन्द्रित हो जाता है। केन्द्रित उपज की खपत भी स्वभावतः भिन्न-भिन्न स्थानों में केन्द्रित हो जाती है जो हमें बढ़े-बड़े वाज़ार, करे और शहर के रूप में दृष्टि-गोचर होते हैं। कारखानों की विराट्‌ उपज - \ को सफल वनानि के लिए उनके वाहक ओर साधक भी स्वभावतः. . चिराद्‌ होते ह । रेल तार, जदाज्‌, विजलीघर, फिर इनके अपने, वङ़-वडे कारखाने चर्‌ उन कारखाने के मजदूर, मृदू ` ` के घरं, अस्पताल, खेल, तमाशे, स्कूल इत्यादि । इनकी रक्षा और ` नियन्त्रण के. लिए पुलिस चनौर सेना, अदालत और हाईकोट खं शरीर जजी, स्याव श्रौर जङ्गम कौ जमघट ने एक नह




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