मुस्लिम संतों के चरित | Muslim Santo Ke Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-ई
( ४९ )
उन्शेमे कहा है-ेने वेरह वपं तक तीथं अरमण किया, किन्तु
सु॒मे ऐसा मालूम देता है कि मेरे वे अनण सांसारिक भावना से ही हुए
थे, कारण, एक चार मेरी माता ने जव सुत्त पानी माँगा तो सुझे चह
सेवा भी भार-रूप मालूम दी । सें इससे अजुमान करता हूं कि तीयं-यात्रा
से मेरी लेश-मान्न भो उन्नति नही हुई ।
গর্ত मुर्ताज़ एक दिन बग़दाद शहर में से जा रहे थे । प्यास लगने
पर उन्होंने एक धनवान के द्वार पर पानी साँगा। ग्रुहस्थ की पुच्रो जल
पात्र लेकर बाहर आई | मुर्ताज्ञ कन्या का रूप-लावण्य देखकर सुग्ध हो
गए । जल पीकर वे লহ্থী वेठे रह गए । बहुत समय बीत जाने पर घर के
मालिक के प्रश्न करने पर उन्होंने उत्तर दिया--भद्बवजन, तुस्दारे घर
से मुझे पानी तो मिला हैं. पर पानी पिल्लाने वालो ने मेरा मन घुरा
लिया हैं ।
गृह-स्वामी वहत ही सहृदय था ¡ बड़ महपि झुर्ताज़ को पहचान
गया । उने कहा- महात्मन्, वड कन्या मेरी पुत्रो दै । श्राप তলব
पाणिश्रतण की श्रमित्ञापा हो तो मे प्रसन्नता-पूर्वेंक डसे आपके चरणों में
समर्पण कूँगा।
मुर्ताज्ञ--हाँ, मेरी ऐसी इच्छा है ।
गुह-स्वामी ने श्रपने इटुभ्नीननां को एकत्रित करके वड़ी धूमधाम से
विवाह की तैयारी को । रिवाज्ञ के सुतारिक नौकर सर्ताज्न को स्नानगृद
मे लेगप्, उन्हें बहुमूल्य वख्राभूपण पदनाये । वधू के साथ वे अंत्ःपुर
में गए । वेशाहिक क्रिया के आरंभ में उपासना करते ही वे उच्च स्वर
से बोज्ञ उठे-भरे, जल्दी मेरी कफनी उठा लायो। इतना रह,
उन्होंने वे क्रीमती वर्लाभुपण निकाल फेंके और पुनः अपनी कफ़नी
पहनकर थे वहाँ से चलन दिए ।
ক
ऐसा करने का कारण पूछने पर उन्होंने बताया--उपासना के
समय मुझे एक अंतध्चेनि सुनाई दी--भरे त्यागी, मेरी इच्छा के
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