गाँधीजी का आर्थिकदर्शन | Gandhiji Ka Arthik Darshan

Gandhiji Ka Arthik Darshan by दूधनाथ चतुर्वेदी - Dudhnath Chaturvedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दूधनाथ चतुर्वेदी - Dudhnath Chaturvedi

Add Infomation AboutDudhnath Chaturvedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ ६ ] र £ ग्रामीण अथ शास्त्र जय अथशास्त्र और जीवन में ग्रामद्ृष्टि का प्रवेश होगा, तब देहात की चीजों का अधिकाधिकर उपयोग करने की ओर जनता का मन झुकेगा | अपने जीवन की आवश्यक वस्तुयें देहात में तैयार कराने की ओर उसका झुकाव होगा। इसके फलस्वरूप देहात की कछा और ओऔजारों को सुधारने की, देहात के लोगों को सिखाने पढ़ाने की, देहाती जंगल तथा खेती को पैदावार तथा उपयोग करने के ज्ञान के श्रभाव में देहात में वेकार चली जाने वाठी सम्पत्ति के अनेक प्राकृतिक साधनों की जाँच पड़ताल की प्रद्वत्ति पैदा होगी। गांधी को ग्राम प्यारा था। वे आ्राज के शहरों को देखना नहीं चाहते थे। शहर की सारी अर्थ-व्यवस्था का आधार शोषण है । समस्त शोपक् और श्रनुत्यादक वर्ग शहरों में रहता है| शहर ग्राम के शोपणगह हैं | सारी सम्पत्ति का सुजन ग्रामीण क्षेत्र मे होवा ई । इसलिये य्ामवासी किसान भगवान्‌ है, श्रन्नदाता है| सबका पालनकर्ता है। गांधी ग्रामस्वराज्य के लिये ही जीवन मर लड़ते रहे | - स्वतंत्र भारत का राष्ट्रति किसान होगा। कांग्रेस श्रान्दोलन किसान श्रान्दोलन रहा । नये प्रकार के गाँव का निर्माण करना, गाँव को पूर्ण शक्तिशाली बनाना, प्रत्येक व्यक्ति को ग्राम सेवा की और संलग्न करना, गांधी का प्रथम रचनात्मक काय था। प्रामीण श्रथंशास्र जितना दी सवक तथा पुष्ट होगा उतना ही राष्ट्र सुखी तथा सम्पन्न होगा। सभी प्रकार का शोघ तथा प्रयोग, सम्पत्ति के स्रोत ग्राम के निर्माण के लिये गांधी जी ने किया | खेती-बारी, पशुपालन तथा उद्योग, इन चार स्तम्मों पर ग्रामीण अथशास्त्र खड़ा है। पंचायत, सहकारिता, आदि का अ्थव्यवस्था के निर्माण में क्या योग है, इसकी पूरी मीमांसा गांधी नी ने की है। हिन्द स्वराज्य में इन सबका नया तथा मौलिक दृष्टिकोण गांधी ने रखा है | ~ श स्वदेशी तथा खादी का अथशास्त्र चरखा स्वराज्य का अमोघ अखत्र है। आज भी कांग्रेस के झणडे पर यह प्रतीक है। गांधी जयन्ती न मनाकर उनका जन्म-दिवस चर्खा जयन्ती के सूपर्मे मनाया जाय, यह गांधी की चरखे के प्रति निष्ठा है । इसके द्वारा वे उत्मादक मजदूर कौ प्रतिष्ठा बढ़ाना चाइते थे । करोड़ों भूखों तथा नंगों की उत्पादक शक्ति का भान कराना चाहते थे। उनके एकादश




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now